विश्व क्षय रोग दिवस
क्षय रोग से जूझ रहे रोगियों के स्वास्थ्य लाभ के लिये परमार्थ गंगा तट पर की प्रार्थनास्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने योगमय जीवन पद्धति अपनाने का संदेश दिया
ऋषिकेश, 24 मार्च। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महराज ने ’विश्व क्षय रोग दिवस’ के अवसर पर तपेदिक के प्रति जागरूकता फैलाने के लिये परमार्थ गंगा आरती के माध्यम से संदेश दिया। साथ ही देश में व्याप्त तपेदिक रोग के पीड़ित रोगियों के स्वास्थ्य लाभ के लिये आज की गंगा आरती समर्पित की। स्वामी जी महाराज ने कहा कि क्षय रोग के प्रति जागरण की यह मुहिम आगे बढ़ती रहे ताकि लोग स्वस्थ होकर अपने देश को स्वस्थ और समृद्ध बनाने में योगदान प्रदान दे सके।
परमार्थ निकेतन में विश्व क्षय रोग दिवस के अवसर पर क्षय रोग के प्रति जागरूकता फैलाने हेतु संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें परमार्थ निकेतन गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने भाग लिया। तपेदिक प्रमुख रूप से फेफड़े या फुफ्फुसीय बैक्टीरिया के कारण होता है। संक्रमित व्यक्ति खांसता, छींकता, बातचीत करता है या हंसता है तो उसके आसपास की हवा दूषित हो सकती है और जीवाणु स्वस्थ व्यक्ति तक पहंुच सकते है जिससे स्वस्थ व्यक्ति भी प्रभावित हो सकता है। तपेदिक का जीवाणु स्वस्थ व्यक्ति के अंगों के साथ-साथ फेफड़ों पर भी हमला कर सकता है। साथ ही क्षय रोग में लिम्फ नोड्स, गुर्दे, गर्भाशय, हड्डियां, केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र, जठरांत्र टैªक्ट प्रभावित हो सकता है।
क्षय रोग का जीवाणु व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला करता हैं यदि व्यक्ति की प्रतिरक्षा कोशिकाएं काफी मजबूत है ंतो उन्हंे यह रोग नहीं हो सकता है। तपेदिक को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है। यदि टीबी के रूप में जीवाणु शरीर में सो रहे हैं तब कोई लक्षण दिखायी नहीं देते ऐसी स्थिति को लेटेंट टीबी के रूप में जाना जाता है तथा एक्टिव टीबी वाले व्यक्ति के शरीर में लक्षणों को अनुभव किया जा सकता है।
क्षय रोग एक फैलने वाला रोग है इसे आरंभिक अवस्था मंे ध्यान न दिया गया तो वह जानलेवा साबित हो सकता है। टीबी का बैक्टीरिया साँस द्वारा शरीर में प्रवेश करता है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि आयुर्वेद जीवन पद्धति और योगमय जीवन अपनाकर अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है जिससे कोई भी रोग शरीर पर अटैक न कर सके।
स्वामी जी महाराज ने टीबी के रोगियों को सामान्य जीवन जीने का संदेेश दिया और कहा कि प्रकृति के सान्निध्य में रहे, प्रसन्न रहे और भयमुक्त जीवन जिये। उन्होने देश वासियों से वृक्षारोपण कर वायु को प्रदूषण मुक्त करने का आह्वान किया।
परमार्थ निकेतन में विश्व क्षय रोग दिवस के अवसर पर क्षय रोग के प्रति जागरूकता फैलाने हेतु संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें परमार्थ निकेतन गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने भाग लिया। तपेदिक प्रमुख रूप से फेफड़े या फुफ्फुसीय बैक्टीरिया के कारण होता है। संक्रमित व्यक्ति खांसता, छींकता, बातचीत करता है या हंसता है तो उसके आसपास की हवा दूषित हो सकती है और जीवाणु स्वस्थ व्यक्ति तक पहंुच सकते है जिससे स्वस्थ व्यक्ति भी प्रभावित हो सकता है। तपेदिक का जीवाणु स्वस्थ व्यक्ति के अंगों के साथ-साथ फेफड़ों पर भी हमला कर सकता है। साथ ही क्षय रोग में लिम्फ नोड्स, गुर्दे, गर्भाशय, हड्डियां, केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र, जठरांत्र टैªक्ट प्रभावित हो सकता है।
क्षय रोग का जीवाणु व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला करता हैं यदि व्यक्ति की प्रतिरक्षा कोशिकाएं काफी मजबूत है ंतो उन्हंे यह रोग नहीं हो सकता है। तपेदिक को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है। यदि टीबी के रूप में जीवाणु शरीर में सो रहे हैं तब कोई लक्षण दिखायी नहीं देते ऐसी स्थिति को लेटेंट टीबी के रूप में जाना जाता है तथा एक्टिव टीबी वाले व्यक्ति के शरीर में लक्षणों को अनुभव किया जा सकता है।
क्षय रोग एक फैलने वाला रोग है इसे आरंभिक अवस्था मंे ध्यान न दिया गया तो वह जानलेवा साबित हो सकता है। टीबी का बैक्टीरिया साँस द्वारा शरीर में प्रवेश करता है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि आयुर्वेद जीवन पद्धति और योगमय जीवन अपनाकर अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है जिससे कोई भी रोग शरीर पर अटैक न कर सके।
स्वामी जी महाराज ने टीबी के रोगियों को सामान्य जीवन जीने का संदेेश दिया और कहा कि प्रकृति के सान्निध्य में रहे, प्रसन्न रहे और भयमुक्त जीवन जिये। उन्होने देश वासियों से वृक्षारोपण कर वायु को प्रदूषण मुक्त करने का आह्वान किया।




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