हिन्दू आतंकवाद की परिभाषा गढऩे वाले दिग्विजय सिंह महात्मा गांधी के विचारों की चिंता नहीं करें। 60 वर्षों के मुकाबले नरेन्द्र मोदी के पांच वर्षों में ज्यादा सम्मान मिला है राष्ट्रपिता को।
(एस.पी.मित्तल)
भोपाल | भोपाल से तीन लाख 66 हजार मतों से चुनाव हारने के बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि भोपाल में महात्मा गांधी की हत्या करने वाली विचारधारा जीत गई। अपनी हार को दिग्विजय सिंह ने महात्मा गांधी के विचारों की हार बताया। सब जानते हैं कि दिग्विजय सिंह का मुकाबला भाजपा की साध्वी प्रज्ञा सिंह से था। यह वो ही प्रज्ञा सिंह है जिनकी गिरफ्तारी पर दिग्विजय सिंह ने देश में हिन्दू भगवा आतंकवाद की परिभाषा गढ़ी थी। केन्द्र में यूपीए के दूसरे कार्यकाल में दिग्विजय सिंह कांग्रेस के मजबूत नेता रहे। तब असली आतंकवाद के असर को कम करने के लिए भगवा आतंकवाद को जबरन खड़ा किया गया। भगवा आतंकवाद की आड़ में दिग्विजय सिंह ने सम्पूर्ण हिन्दू समाज को आपमानित करने का जो कृत्य किया उसी का परिणाम है कि साध्वी प्रज्ञा से तीन लाख 66 हजार मतों से हारना पड़ा। दिग्विजय सिंह को महात्मा गांधी के विचारों की चिंता की चिंता नहीं करनी चाहिए। क्योंकि पिछले पांच वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने अधिकांश अभियान महात्मा गांधी पर ही केन्द्रित रखे। देश दुनिया का सबसे बड़ा स्वच्छता अभियान गांधी पर ही है। दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी की प्रतिमा लगाने का काम हो या फिर देश में महात्मा गांधी के विचारों को आगे बढ़ाने का काम, सभी में मोदी ने सक्रिय भूमिका निभाई है। मोदी ने पिछले पांच वर्ष में ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जिससे महात्मा गांधी का प्रभाव कम होता हो। अपने भाषणों में भी महात्मा गांधी के विचारों का बार बार उल्लेख किया। सरकार की कई योजनाएं महात्मा गांधी को समर्पित की है। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने जब नाथुराम गोडसे को देश भक्त बताया तो मोदी ने सार्वजनिक मंच से आलोचना की। मोदी का यहां तक कहना रहा कि भले ही साध्वी ने माफी मांग ली हो, लेकिन मैं मन से कभी भी साध्वी को माफ नहीं करुंगा। इससे बड़ी सजा साध्वी को नहीं दी जा सकती है। जिस साध्वी ने बेवजह जेलों में यातनाएं सही हों, जिस साध्वी की धार्मिक संस्कृति का मजाक उड़ाया गया हो, उस साध्वी को प्रधानमंत्री मुंह से इतनी सख्त भाषा सुननी पड़े, इससे ज्यादा और क्या हो सकता है? दिग्विजय सिंह महात्मा गांधी की आड़ लेकर अपनी हार को छिपाना चाहते हैं। दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं और भोपाल में उनकी जबर्दस्त लोकप्रियता रही है, लेकिन फिर भी दिग्विजय सिंह इतनी बुरी तरह हारते हैं तो इसका मुख्य कारण उनके द्वारा सनातन संस्कृति का मजाक उड़ाना है। अच्छा हो कि अब दिग्विजय सिंह प्रायश्चित करें और भगवा आतंकवाद की परिभाषा गढऩे के लिए सार्वजनिक तौर पर माफी मांगे।
(एस.पी.मित्तल)
भोपाल | भोपाल से तीन लाख 66 हजार मतों से चुनाव हारने के बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि भोपाल में महात्मा गांधी की हत्या करने वाली विचारधारा जीत गई। अपनी हार को दिग्विजय सिंह ने महात्मा गांधी के विचारों की हार बताया। सब जानते हैं कि दिग्विजय सिंह का मुकाबला भाजपा की साध्वी प्रज्ञा सिंह से था। यह वो ही प्रज्ञा सिंह है जिनकी गिरफ्तारी पर दिग्विजय सिंह ने देश में हिन्दू भगवा आतंकवाद की परिभाषा गढ़ी थी। केन्द्र में यूपीए के दूसरे कार्यकाल में दिग्विजय सिंह कांग्रेस के मजबूत नेता रहे। तब असली आतंकवाद के असर को कम करने के लिए भगवा आतंकवाद को जबरन खड़ा किया गया। भगवा आतंकवाद की आड़ में दिग्विजय सिंह ने सम्पूर्ण हिन्दू समाज को आपमानित करने का जो कृत्य किया उसी का परिणाम है कि साध्वी प्रज्ञा से तीन लाख 66 हजार मतों से हारना पड़ा। दिग्विजय सिंह को महात्मा गांधी के विचारों की चिंता की चिंता नहीं करनी चाहिए। क्योंकि पिछले पांच वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने अधिकांश अभियान महात्मा गांधी पर ही केन्द्रित रखे। देश दुनिया का सबसे बड़ा स्वच्छता अभियान गांधी पर ही है। दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी की प्रतिमा लगाने का काम हो या फिर देश में महात्मा गांधी के विचारों को आगे बढ़ाने का काम, सभी में मोदी ने सक्रिय भूमिका निभाई है। मोदी ने पिछले पांच वर्ष में ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जिससे महात्मा गांधी का प्रभाव कम होता हो। अपने भाषणों में भी महात्मा गांधी के विचारों का बार बार उल्लेख किया। सरकार की कई योजनाएं महात्मा गांधी को समर्पित की है। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने जब नाथुराम गोडसे को देश भक्त बताया तो मोदी ने सार्वजनिक मंच से आलोचना की। मोदी का यहां तक कहना रहा कि भले ही साध्वी ने माफी मांग ली हो, लेकिन मैं मन से कभी भी साध्वी को माफ नहीं करुंगा। इससे बड़ी सजा साध्वी को नहीं दी जा सकती है। जिस साध्वी ने बेवजह जेलों में यातनाएं सही हों, जिस साध्वी की धार्मिक संस्कृति का मजाक उड़ाया गया हो, उस साध्वी को प्रधानमंत्री मुंह से इतनी सख्त भाषा सुननी पड़े, इससे ज्यादा और क्या हो सकता है? दिग्विजय सिंह महात्मा गांधी की आड़ लेकर अपनी हार को छिपाना चाहते हैं। दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं और भोपाल में उनकी जबर्दस्त लोकप्रियता रही है, लेकिन फिर भी दिग्विजय सिंह इतनी बुरी तरह हारते हैं तो इसका मुख्य कारण उनके द्वारा सनातन संस्कृति का मजाक उड़ाना है। अच्छा हो कि अब दिग्विजय सिंह प्रायश्चित करें और भगवा आतंकवाद की परिभाषा गढऩे के लिए सार्वजनिक तौर पर माफी मांगे।
0 comments:
Post a Comment