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Tuesday, 7 May 2019

CBSE Toppers के नाम IAS -निशान्त जैन का एक खुला ख़त

(ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )राजस्थान |
प्रिय टॉपर भाइयों/बहनों।
सबसे पहले तुम्हें परीक्षा में इतने ज़बरदस्त और अविश्वसनीय से लगने वाले स्कोर के लिए ख़ूब सारी बधाई।
तुम्हें शायद मालूम भी नहीं होगा कि तुम्हारे इस भारीभरकम स्कोर के बाद तुम्हें मिल रही बधाइयों के साथ-साथ शिक्षा प्रणाली के मूल्याँकन के तरीक़ों और CBSE बोर्ड पर सवाल भी उठ रहे हैं और एक बहस भी चल पड़ी है कि क्या किसी विद्यार्थी को आर्ट्स/ह्यूमैनिटीज़ के विषयों के सब्जेटिव टाइप पेपर में 100 में से 100 या 99 या 95 अंक मिल सकते हैं?
ख़ैर, तुम्हें उम्र के उस पड़ाव पर इस बहस में नहीं पड़ना है। तुम्हारे सामने उम्मीदों का एक खुला आसमान है, जिस पर अभी तुम्हें बहुत आगे जाना है।

पर मेरी कुछ चिन्ताएँ (concerns) हैं और कुछ सलाहें भी, जिन्हें तुमसे साझा करना मुझे ज़रूरी लगता है:-

तुम्हें ख़ुश होने और बधाइयाँ स्वीकार करने का पूरा हक़ है, पर इस उपलब्धि को मंज़िल नहीं, सिर्फ़ अपने लम्बे सफ़र की शुरुआत ही समझना। लोग तुम्हें आम से खास बनाने की हर कोशिश करेंगे, पर तुम इनके बहकावे में आकर अपनी सहजता और अपना बचपना मत खोना। ये बिलकुल मत समझना कि तुम सर्वश्रेष्ठ हो। तुम स्वयं को हमेशा ‘best’ नहीं, बल्कि ‘among the best’ समझना।
       अब चूँकि तुममें से कुछ विद्यार्थी 500 में से 499 अंक तक भी स्कोर कर चुके हो, इसलिए अब जीवन में आगे की एकेडमिक और प्रतियोगी, सभी तरह की परीक्षाओं में तुमसे इसी प्रदर्शन को रिपीट करने की उम्मीद की जाएगी। अभी तुम बहुत सी परीक्षाओं में बैठोगे। चूँकि अब आगे ग्रेजुएशन/पोस्ट ग्रेजुएशन या फिर अपनी choice के मुताबिक़ तुम IIT, NEET, CLAT, CAT, GATE, NET-JRF, UPSC आदि प्रतियोगी परीक्षाओं में हिस्सा लोगे।

            मेरी तुम्हें सलाह है कि तुम किसी दबाव में मत आना। परफ़ेक्शन नाम की कोई चीज़ इस धरती पर नहीं पायी जाती। ऐसा भी सम्भव है (बल्कि ज़्यादा सम्भावना इसी बात की है) कि तुम भविष्य की प्रतियोगी या एकेडमिक परीक्षाओं में इस परसेंट के आस-पास न पहुँच पाओ। (DU में एम.ए. कॉर्सेज़ में आम तौर पर 70-75% पर टॉपर होता है और UPSC में तो 55-60% स्कोर पर IAS टॉपर बन जाते हैं।) ऐसे में तुम चिंता मत करना और न ही किसी पड़ोसी-साथी-रिश्तेदार के दबाव में आना। यह तनाव और अवसाद का कारण बन सकता है।

मुझे एक बात की चिंता, या यूँ कहूँ कि घबराहट सी हुई, जब तुममें से किसी ने इंटरव्यू में ये कहा कि तुम्हें 500 में से 499 नम्बर लाकर भी 1 नम्बर कम आने का दुःख है। शायद किसी ने यह भी कहा कि अगर वह सोशल मीडिया या अन्य किसी मनोरंजन के साधन पर टाइम वेस्ट नहीं करता/करती तो वह ये 1 नम्बर भी हासिल कर पूरे 500/500 अंक प्राप्त कर सकता/सकती थी। ऐसी ही घबराहट मुझे हाल ही में तब हुई थी, जब IAS की परीक्षा में बेहतरीन रैंक पाकर टॉपर बनी एक छात्रा ने इस बात पर अफ़सोस जताया कि उसे रैंक 1, 2 या 3 क्यों नहीं हासिल हुई।

फ़्रेंच विचारक बर्क ने कहीं लिखा था, ‘मुझे बता देना कि आज-कल युवाओं के मन में कौन सी भावनाएँ सर्वाधिक प्रबल हैं, मैं बता दूँगा कि आगामी पीढ़ी का चरित्र कैसा होगा।’

प्रिय टॉपर,
मुझे घबराहट और डर इस बात का है कि कहीं आने वाली पीढ़ी नम्बरों, पर्सेंट और रैंक के मकड़जाल और rat race में उलझकर न रह जाए। तुम्हारी एक पर्सेंट भी ग़लती नहीं; दरअसल ग़लती हमारी, हमारी सोसायटी और हमारे उस सिस्टम कि है, जो टॉपर को भी 1 अंक या रैंक कम आने के अफ़सोस से भर देता है। ऐसा सिस्टम, जो लिटेरेचर और म्यूज़िक जैसे सबजेक्टिव विषयों में 100 में से 100 नम्बर देकर युवाओं को अति-आत्मविश्वास और ग़लतफ़हमी का शिकार बना देता है। ऐसा सिस्टम, जो बच्चों में परफ़ेक्शन के प्रति एक जुनून और पागलपन सा भरने को उतारू है। ऐसा सिस्टम, जो युवा पीढ़ी को यह समझाने और अहसास कराने में असफल रहा है कि परीक्षा में अच्छे नम्बर पाने की सफलता और जीवन में सफलता में अंतर है और केवल अच्छे नम्बर लाना, बेहतर और सुखी जीवन की गारंटी नहीं है।

इन सब कारणों से मैं अपने युग, अपने समाज, अपनी शिक्षा और मूल्याँकन प्रणाली और युवाओं के मन में चल रही अन्धाधुन्ध दौड़ के इस अजीब से पागलपन से चिंतित हूँ।
चलते-चलते तुम से यही उम्मीद है कि तुम इस अन्धाधुन्ध गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में अपने परिवार और दोस्तों के साथ सहजता और मौज-मस्ती को अनदेखा नहीं करोगे। दिल और दिमाग़ दोनों का संतुलित इस्तेमाल करना। मेहनत ख़ूब करना पर परफ़ेक्शन के चक्कर में मत पड़ना।
हमेशा व्यस्त और मस्त रहना।
पुनः बधाई और शुभकामना।

-निशान्त
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