* अजीत पवार अपने चाचा के नक्शेकदम पर चलते हुए राजनीति में आए।
* महाराष्ट्र की बारामती सीट पिछले 52 सालों में यहां से विधायक की कुर्सी पर सिर्फ दो ही लोग बैठे हैं।
* अजित पवार ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1982 में की थी।
(ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
मुम्बई । अजित पवार का जन्म 22 जुलाई, 1959 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में उनके दादा-दादी के यहां हुआ। अजित पवार एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के बड़े भाई अनंतराव पवार के बेटे हैं। उनके पिता वी शांताराम के राजकमल स्टूडियो में काम करते थे। अजीत पवार अपने चाचा के नक्शेकदम पर चलते हुए राजनीति में आए।
राजनीति में वह एक राजनेता से आगे बढ़ते हुए महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री बने। वह अपने चाहने वालों और जनता के बीच दादा (बड़े भाई) के रूप में लोकप्रिय हैं। अजित पवार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा देओली प्रवर से की और उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा महाराष्ट्र शिक्षा बोर्ड से की। पवार ने केवल माध्यमिक विद्यालय स्तर तक ही पढ़ाई की। महाराष्ट्र की बारामती सीट पिछले 52 सालों में यहां से विधायक की कुर्सी पर सिर्फ दो ही लोग बैठे हैं और वो दोनों ही पवार परिवार से हैं शरद पवार और अजित पवार। अब तक दोनों इस सीट से छह-छह बार विधायक बन चुके हैं। दोनों ने मिलाकर आठ बार कांग्रेस और चार बार एनसीपी के झंडे पर जीत हासिल की।
शरद पवार 1967 से 1990 तक लगातार कांग्रेस से लड़ें और जीते। बाद में उनके उत्तराधिकारी के रूप में अजित पवार ने भी दो बार कांग्रेस से चुनाव लड़कर जीत हासिल की। फिर शरद पवार कांग्रेस से अलग हो गए और एनसीपी का गठन किया। तब से लेकर अब तक चार बार अजित पवार एनसीपी से यहां जीतते रहे थे। शिवसेना या भाजपा में से कोई भी, कभी भी यहां जीत नहीं पाया था। वहीं, इस बार के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में वह सातवीं बार इस सीट से जीते।
कैसा रहा है अजित पवार का राजनीतिक करियर
अजित पवार ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1982 में की थी जब वह केवल 20 साल की उम्र में थे। उन्होंने राजनीति में पहले कदम के रूप में एक चीनी सहकारी संस्था के लिए चुनाव लड़ा। इसके बाद आता है साल 1991 जिसमें, वह पुणे जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष बनते हैं और वह 16 साल तक इस पद पर रहे। अजित 1991 में बारामती निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए, लेकिन उन्होंने अपने चाचा शरद पवार के लिए सीट खाली कर दी, जो उस समय पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार में भारत के रक्षा मंत्री थे।
फिर वह उसी वर्ष महाराष्ट्र विधानसभा के लिए चुने गए और नवंबर 1992 से फरवरी 1993 तक कृषि और बिजली राज्य मंत्री रहे। तब तक अजित पवार राजनीति में धीरे-धीरे एक बड़ा नाम बन चुके थे। साल 1995, 1999, 2004, 2009 और 2014 में बारामती निर्वाचन क्षेत्र से वह लगातार जीतते रहे। उनके अब तक के महत्वपूर्ण पदों में कृषि, बागवानी और बिजली राज्य मंत्री, जल संसाधन मंत्री (कृष्णा घाटी और कोकन सिंचाई, तीन बार) और वह 29 सितंबर 2012 से 25 सितंबर 2014 महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री भी रहे।
पहले भी रह चुके हैं उप मुख्यमंत्री
अजित को महाराष्ट्र में एक महत्वाकांक्षी नेता के रूप में देखा जाता है, और माना जाता है कि उनके पास महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने के सभी गुण हैं। महाराष्ट्र में साल 2009 में हुए विधानसभा चुनावों के ठीक बाद अजित ने उप मुख्यमंत्री बनने की इच्छा व्यक्त की। हालांकि, उस दौरान उनकी जगह छगन भुजबल को महाराष्ट्र का उप मुख्यमंत्री पद के लिए चुना गया था।
लेकिन फिर सियासत में बदलाव होता है। नाटकीय रूप से दिसंबर 2010 में अजित की इच्छा पूरी होती है और उप मुख्यमंत्री बनते हैं। फिर साल 2013 में उनका नाम एक विवाद से जुड़ता है, अजित का नाम एक सिंचाई घोटाले में आता है और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। लेकिन विपक्ष के आरोप पर एनसीपी के काफी दबाव के बाद सात दिसंबर 2013 को उन्हें क्लीन चिट मिलती है और वह अपने पद पर फिर से काबिज होते हैं।
अजित पवार को महाराष्ट्र की राजनीति में एनसीपी के सबसे बड़े नेता के रूप में भी देखा जाता है और कई लोग यहां तक कहते हैं कि उनकी वर्तमान एनसीपी प्रमुख और अपने चाचा शरद पवार के साथ तल्खी रहती है। हालांकि, उन्होंने हमेशा खुद को शरद पवार के अनुयायी के रूप में पेश किया है।
विवादों से कुछ ऐसा नाता हैं अजित पवार का
जब भी अजित पवार का नाम सामने आता है तो विवाद भी उनके साथ ही चले आते हैं। सात अप्रैल 2013 को आया अजित पवार का एक बयान बेहद चर्चा में रहा। पुणे के पास इंदापुर में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि अगर बांध में पानी नहीं है तो क्या पेशाब करके भरें? उनके इस बयान को लेकर काफी आलोचना की गई थी। बाद में खुद अजित पवार ने इसके लिए माफी मांगी थी और उन्होंने कहा था कि ये उनके जीवन की सबसे बड़ी गलती थी।
वहीं, 2014 लोकसभा चुनावों के दौरान उन पर मतदाताओं को धमकाने के आरोप भी लगे थे। कहा गया कि उन्होंने गांववालों को धमकी भी दी थी। बोला था कि अगर सुप्रिया सुले को वोट नहीं दिया तो वो गांववालों का पानी बंद कर देंगे।
दूसरी ओर उनका नाम अक्सर भ्रष्टाचार के मामलों में आया है। हाल ही में, मुंबई पुलिस ने कथित रूप से उनके द्वारा इस्तेमाल की गई एक कार को जब्त किया था, जिसमें से चार लाख 85 हजार रुपये मिले थे। उन पर पद का दुरुपयोग का भी आरोप लग चुके हैं, कहा गया था कि उन्होंने जल संसाधन मंत्री रहते हुए लवासा लेक सिटी प्रोजेक्ट के विकास में अनुचित रूप से सहायता प्रदान की थी।
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