* धर्मांतरण पर कानून बनाने का आदेश देने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार,शाहीन बाग के धरने पर सिर्फ नोटिस।
* हालांकि भाजपा की राजनीति से दूर रहने के बयान आरएसएस की ओर से पूर्व में भी आते रहे हैं।
* लेकिन आरएसएस के ताजा बयान को दिल्ली के चुनाव परिणाम से जोड़कर देखा जा रहा है।
(एस.पी.मित्तल)
नई दिल्ली। 11 फरवरी को दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणाम आने हैं, लेकिन इससे एक दिन पहले 10 फरवरी को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शीर्ष पदाधिकारी भैय्याजी जोशी का एक महत्त्वपूर्ण बयान सामने आया है। आरएसएस की ओर से इस बयान में कहा गया है कि भारतीय जनता पार्टी के विरोध का मतलब हिन्दू विरोध नहीं है। बीजेपी का मतलब सम्पूर्ण हिन्दू समाज नहीं है। हालांकि भाजपा की राजनीति से दूर रहने के बयान आरएसएस की ओर से पूर्व में भी आते रहे हैं, लेकिन आरएसएस के ताजा बयान को दिल्ली के चुनाव परिणाम से जोड़कर देखा जा रहा है।
न्यूज चैनलों के एग्जिट पोल में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल दोबारा से मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं, हालांकि भाजपा ने भी सरकार बनाने का दावा किया है। लेकिन हवा का रुख बता रहा है कि भाजपा को बहुमत मिलना मुश्किल है। सब जानते हैं कि दिल्ली के चुनाव में शाहीन बाग के धरने का मुद्दा छाया रहा। संशोधित नागरिकता कानून के विरोध को लेकर शाहीन बाग के धरने को कांग्रेस और केजरीवाल की आम आमदी पार्टी का खुला समर्थन मिला, जबकि भाजपा के नेताओं ने शाहीन बाग के धरने का जमकर विरोध किया। चूंकि शाहीन बाग में धरने पर बैठने वालों में मुस्लिम महिलाओं और पुरुषों की संख्या ज्यादा रही, इसलिए दिल्ली के चुनाव में हिन्दू-मुसलमान का मुद्दा भी छाया रहा। यह माना गया कि हिन्दू मतदाता भाजपा के पक्ष में एकजुट हो रहे हैं, लेकिन केजरीवाल की मुफ्त बिजली, पानी आदि की योजनाओं ने एकजुटता को तोड़ दिया। ऐसे माहौल में आरएसएस का ताजा बयान बहुत मायने रखता है।
सुप्रीम कोर्ट का इंकार:
जबरन और लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाने को लेकर 10 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। जनहित याचिका में मांग की गई थी कि धर्मांतरण पर कानून बनाने के लिए सरकार को आदेश दिया जाए। कोर्ट का कहना रहा कि कानून बनाने का काम संसद और राज्यों की विधानसभा को है। कोर्ट ज्यादा से ज्यादा ऐसे कानूनों की समीक्षा कर सकती है, लेकिन किसी मुद्दे पर कानून बनाने के लिए आदेश नहीं दे सकती है। यहां यह उल्लेखनीय है कि धर्मांतरण पर कानून बनाने की मांग लगातार होती रही है। आरोप है कि जबरन या फिर लालच देकर गरीब वर्ग के लोगों का धर्म परिवर्तन करवाया जाता है।
सिर्फ नोटिस:
10 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग के अनिश्चित कालीन धरने को लेकर भी सुनवाई हुई, लेकिन धरने को खत्म करवाने के लिए कोर्ट ने कोई अंतरिम आदेश जारी करने से इंकार कर दिया। लेकिन कोर्ट ने माना कि सार्वजनिक स्थान पर लम्बे समय तक धरना नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने दिल्ली सरकार और पुलिस को नोटिस जारी कर आगामी 17 फरवरी को जवाब प्रस्तुत करने के लिए बुलाया है। मालूम हो कि सीएए के विरोध में पिछले 58 दिनों से शाहीन बाग में धरना दिया जा रहा है, जिससे रोजाना करीब 10 लाख लोगों को परेशानी हो रही है।
* हालांकि भाजपा की राजनीति से दूर रहने के बयान आरएसएस की ओर से पूर्व में भी आते रहे हैं।
* लेकिन आरएसएस के ताजा बयान को दिल्ली के चुनाव परिणाम से जोड़कर देखा जा रहा है।
(एस.पी.मित्तल)
नई दिल्ली। 11 फरवरी को दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणाम आने हैं, लेकिन इससे एक दिन पहले 10 फरवरी को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शीर्ष पदाधिकारी भैय्याजी जोशी का एक महत्त्वपूर्ण बयान सामने आया है। आरएसएस की ओर से इस बयान में कहा गया है कि भारतीय जनता पार्टी के विरोध का मतलब हिन्दू विरोध नहीं है। बीजेपी का मतलब सम्पूर्ण हिन्दू समाज नहीं है। हालांकि भाजपा की राजनीति से दूर रहने के बयान आरएसएस की ओर से पूर्व में भी आते रहे हैं, लेकिन आरएसएस के ताजा बयान को दिल्ली के चुनाव परिणाम से जोड़कर देखा जा रहा है।
न्यूज चैनलों के एग्जिट पोल में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल दोबारा से मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं, हालांकि भाजपा ने भी सरकार बनाने का दावा किया है। लेकिन हवा का रुख बता रहा है कि भाजपा को बहुमत मिलना मुश्किल है। सब जानते हैं कि दिल्ली के चुनाव में शाहीन बाग के धरने का मुद्दा छाया रहा। संशोधित नागरिकता कानून के विरोध को लेकर शाहीन बाग के धरने को कांग्रेस और केजरीवाल की आम आमदी पार्टी का खुला समर्थन मिला, जबकि भाजपा के नेताओं ने शाहीन बाग के धरने का जमकर विरोध किया। चूंकि शाहीन बाग में धरने पर बैठने वालों में मुस्लिम महिलाओं और पुरुषों की संख्या ज्यादा रही, इसलिए दिल्ली के चुनाव में हिन्दू-मुसलमान का मुद्दा भी छाया रहा। यह माना गया कि हिन्दू मतदाता भाजपा के पक्ष में एकजुट हो रहे हैं, लेकिन केजरीवाल की मुफ्त बिजली, पानी आदि की योजनाओं ने एकजुटता को तोड़ दिया। ऐसे माहौल में आरएसएस का ताजा बयान बहुत मायने रखता है।
सुप्रीम कोर्ट का इंकार:
जबरन और लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाने को लेकर 10 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। जनहित याचिका में मांग की गई थी कि धर्मांतरण पर कानून बनाने के लिए सरकार को आदेश दिया जाए। कोर्ट का कहना रहा कि कानून बनाने का काम संसद और राज्यों की विधानसभा को है। कोर्ट ज्यादा से ज्यादा ऐसे कानूनों की समीक्षा कर सकती है, लेकिन किसी मुद्दे पर कानून बनाने के लिए आदेश नहीं दे सकती है। यहां यह उल्लेखनीय है कि धर्मांतरण पर कानून बनाने की मांग लगातार होती रही है। आरोप है कि जबरन या फिर लालच देकर गरीब वर्ग के लोगों का धर्म परिवर्तन करवाया जाता है।
सिर्फ नोटिस:
10 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग के अनिश्चित कालीन धरने को लेकर भी सुनवाई हुई, लेकिन धरने को खत्म करवाने के लिए कोर्ट ने कोई अंतरिम आदेश जारी करने से इंकार कर दिया। लेकिन कोर्ट ने माना कि सार्वजनिक स्थान पर लम्बे समय तक धरना नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने दिल्ली सरकार और पुलिस को नोटिस जारी कर आगामी 17 फरवरी को जवाब प्रस्तुत करने के लिए बुलाया है। मालूम हो कि सीएए के विरोध में पिछले 58 दिनों से शाहीन बाग में धरना दिया जा रहा है, जिससे रोजाना करीब 10 लाख लोगों को परेशानी हो रही है।
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