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Sunday, 26 May 2019

पहली बार किसी भारतीय ने अंतर्राष्ट्रीय मंच से दुनिया को देवभाषा संस्कृत में किया संबोधित,कौन है वह ?जाने

स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभुतपूर्व योगदान के लिए आचार्य बालकृष्ण को मिला ‘10 अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व अवार्ड’ 
  • संयुक्त राष्ट्र की संस्था UNSDG द्वारा जेनेवा में किया गया सम्मानित
  • जाम्बिया व जिम्बाब्वे के स्वास्थ्यमंत्रियों के करकमलों से प्राप्त किया सम्मानित  
  • UNSDG के सभी उद्देश्यों में हम समानधर्मी: आचार्य बालकृष्ण

(ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
हरिद्वार /संयुक्त राष्ट्र पतंजलि संस्थान के पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी महाराज को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए यू.एन.ओ. की संस्था यू.एन.एस.डी.जी. (यूनाइटिड नेशन सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल) द्वारा विश्व के 10 सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्व की श्रेणी में स्थान दिया गया है। साथ ही स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं में अभुतपूर्व योगदान तथा आयुर्वेद और योग के क्षेत्र में नवीन अनुसंधान के लिए पूज्य आचार्य जी को ‘10 अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व’ पुरस्कार दिया गया है। आचार्य जी ने यह पुरस्कार जाम्बिया व जिम्बाब्वे के स्वास्थ्यमंत्रियों के कर-कमलों से प्राप्त किया। आचार्य जी ने यह पुरस्कार उन सभी को समर्पित किया जिन्होंने वैश्विक स्तर पर योग और आयुर्वेद को मुख्यधारा से जोड़ने में योगदान दिया।
इस अवसर पर पतंजलि योगपीठ के सभागार में आयोजित एक प्रेसवार्ता में पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ने कहा कि यह पूरे देश के लिए गौरव का विषय है कि विश्व में प्रथम बार ऐसा सम्मान किसी भारतीय को मिल रहा है। कार्यक्रम में पूरे विश्व से लगभग 20 स्पीकर्स आ रहे हैं जिनमें प्रथम स्थान पूज्य आचार्य आचार्य जी को दिया गया है। स्वामी जी महाराज ने बताया कि श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज के अतिरिक्त यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले अन्य 4 शीर्ष व्यक्तियों WHO के डॉयरेक्टर जनरल डॉ. टेड्रोस अधानोम घेब्रेयसस, WHO के अफ्रीका के डॉयरेक्टर डॉ. मत्सिडिसो रेबेका मोइती, प्रोमेडिका के अध्यक्ष और सीईओ श्री रैंडी ओस्ट्रा तथा चीन के विख्यात वैकल्पिक चिकित्सा (alternative medicine) विशेषज्ञ श्री एबे ली. आदि गणमान्य शामिल हैं। उन्होंने कहा कि पतंजलि तथा श्रद्धेय आचार्य जी के इस सम्मान से न केवल भारत का गौरव बढ़ा है अपितु पूरे विश्व में भारत की वैज्ञानिक व पारम्परिक चिकित्सा पद्धति योग व आयुर्वेद की स्वीकार्यता को बल मिला है। 
जिनेवा में UNSDG द्वारा आयोजित स्वास्थ्य सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में पूज्य आचार्य जी ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि विश्व की सबसे प्राचीन परम्परा- योग व आयुर्वेद के प्रभाव को उसकी मूल भाषा संस्कृत में बताते हुए मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है। उन्होंने कहा कि UNSDG के सभी उद्देश्यों में हम समानधर्मी हैं तथा विश्व को अपना परिवार मानते हुए सीमित संस्थागत साधनों में भी अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ व लाखों स्वयंसेवकों के सहयोग से जनकल्याण व उत्तम स्वास्थ्य हेतु वैश्विक स्तर पर अनेक कार्य कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि पतंजलि संस्थान द्वारा योग, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, व उत्तमचर्या के माध्यम से मोटापा, रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, कमर दर्द, संधिवात, वृक्क रोग, यकृत् रोग, फेफड़ों का जीर्ण रोग, कैंसर आदि रोगों में 65 से अधिक देशों के करोड़ों लोग लाभ प्राप्त कर रहे हैं। साथ ही योगासन, प्राणायाम व ध्यान आदि यौगिक क्रियाएँ सीखकर विश्व के लाखों लोग मादक द्रव्यों के सेवन आदि दुर्व्यसनों व मानसिक अवसाद से मुक्त हो रहे हैं।
पूज्य आचार्य जी ने कहा कि पतंजलि अनुसंधानशालाओं में हजारों वर्षों से प्रचलित शास्त्रीय औषधों के प्रभाव को आधुनिक विज्ञान के अनुसार प्रमाणित करने के लिए ‘रिवर्स फार्माकोलॉजी’ के माध्यम से शोध कार्य किया जा रहा है। नए अनुसंधानों द्वारा पादपौषधों को ‘साक्ष्य आधारित औषध (एवीडेन्स बेस्ड मेडिसिन)’ के रूप में स्थापित करना हमारा लक्ष्य है। इस प्रकार किए जा रहे अनुसंधान के निष्कर्ष यथासमय विश्वस्तरीय शोध-पत्रिकाओं में प्रकाशित किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि डिजिटल हेल्थ सेवा के क्षेत्र में पतंजलि में EMR के तहत 70 लाख से ज़्यादा विविध रोगों के रोगियों का अंकीकरण उपलब्ध है। इसी प्रकार योग, आयुर्वेद के प्रशिक्षण कार्यक्रमों का 15 हजार घण्टों का डिजिटल रिकार्ड उपलब्ध है। परम पूज्य योगऋषि स्वामी रामदेव के प्रयास से प्रत्यक्ष रूप से व अनेक टी-वी- चैनलों एवं सोशल मीडिया आदि के माध्यम से विश्व के सौ से अधिक देशों के 50 करोड़ से अधिक लोग योग अपना चुके हैं। 
उन्होंने कहा कि सार्वभौम स्वास्थ्य के क्षेत्र में विश्व की 60 से 70 प्रतिशत आबादी जड़ी-बूटी आधारित (बॉटेनी बेस्ड मेडिसिन सिस्टम) 61 प्रकार की चिकित्सा-पद्धतियों पर निर्भर है। इस प्रकार की सभी पद्धतियों के समन्वय एवं आधुनिक अनुसंधान के साथ ‘विश्वभेषज-संहिता’ का निर्माण किया जा रहा है, जिसमें दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं तथा दो हजार से ज्यादा जनजातियों में प्रचलित 60 हजार वनस्पतियों का बाह्य व आन्तरिक स्वरूप, गुण एवं उपयोग आदि का सर्वांगीण वर्णन किया जा रहा है। विश्व-भेषज संहिता में फार्माकोलॉजी सहित रासायनिक संघटन तथा आज तक का सम्पूर्ण अनुसंधान को एक साथ दिया जा रहा है।
आचार्य जी ने कहा कि ऐसा ही कार्य WHO द्वारा वर्ष 1999 में प्रारम्भ किया गया था, जो वर्ष 2010 तक चला। परन्तु अब इस कार्य को समग्रता से पतंजलि द्वारा पूर्ण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि विश्व भेषज संहिता की रचना का यह बृहत्तम कार्य विश्व के इतिहास में अभूतपूर्व होगा। इसमें विश्व की 1650 से ज्यादा भाषाओं में उपलब्ध औषधीय पौधों के 12 लाख से अधिक नामों का संग्रह होगा। इसमें वर्णित 35 हजार औषधीय पौधों के हस्त निर्मित चित्र (कैन्वास पेंटिंग) भी बनाए गए हैं। उन्होंने कहा कि लगभग 6 लाख संदर्भ-उद्धरणों एवं एक लाख से अधिक पृष्ठों वाले इस ग्रन्थ को यथाशीघ्र पूरा करने का लक्ष्य है।
आचार्य जी ने कहा कि हम केवल मात्र प्रेरणादायक वैचारिक आन्दोलन या गैरसरकारी संस्था के रूप में इस कार्य को नहीं कर रहे हैं, अपितु इसके लिए हम अपने साथ लाखों स्वयंसेवी व्यक्तियों को साथ लेकर आगे बढ़ रहे हैं और अपने सम्पूर्ण जीवन को आहुत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
इस समिट में 50 देशों से लगभग 500 प्रतिभागियों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में देशों के प्रमुख, स्वास्थ्य मंत्री, नीति निर्माता, उद्योग और सिविल सोसाइटीज के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारियों समेत विश्व स्वास्थ्य संगठन के शीर्ष अधिकारी तथा विख्यात वैज्ञानिक शामिल हुए। इस अवसर पर एक पुस्तक ‘द वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन’ ए हिस्ट्री का लोकार्पण किया गया।
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