सीजेआई पर आरोप लगाने वाली महिला जांच से अलग हुई।
(एस.पी.मित्तल)
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट के आदेश और दिशा निर्देश देशभर में नजीर बन जाते हैं। वकीलगण सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और दिशा निर्देशों को सामने रखकर अदालतों से फैसले करवाते हैं। यानि सुप्रीम कोर्ट की हर गतिविधि का देश भर में असर पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई पर जिस पूर्व महिला कर्मचारी ने यौनशोषण के आरोप लगाए हैं वह महिला अब जस्टिा एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन जजों की इन हाउस जांच कमेटी से अलग हो गई है। सीजेआई रंगन गोगोई के साथ काम कर चुकी इस महिला का आरोप है कि जांच कमेटी न्याय नहीं करेगी। उसे जांच कमेटी के समक्ष उपस्थित होने में डर लगता है। सुनवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग भी नहीं करवाई जा रही है। यहां तक उसके पूर्व के बयानों की प्रति भी नहीं दिलवाई जा रही है। यहां यह उल्लेखनीय है कि महिला के आरोप उजागर होते ही जस्टिस गोगोई ने दो जजों के साथ स्वयं सुनवाई की थी और जस्टिा अरुण मिश्रा की अध्यक्ष्ज्ञता में तीन सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया। जस्टिस गोगाई पहले ही ऐसे आरोपों को खारिज कर चुके हैं। इतना ही नहीं जस्टिस गोगोई का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का दबाव डालने के लिए ऐसे आरोप प्रभावशाली लोगों ने लगवाएं हैं। सवाल उठता है कि इन हालातों में आरोपों की जांच हो रही है, क्या पीडि़ता के अनुकूल है? न्याय का सिद्धांत तो यही कहता है कि पीडि़ता को अनुकूल माहौल मिलना चाहिए। हमने कई बार देखा है कि सुप्रीम कोर्ट पीडि़त की मांग पर मुकदमों की सुनवाई संबंधित प्रदेश से बाहर करवाई है। गुजरात के दंगों में मुकदमों की सुनवाई महाराष्ट्र में हुई है। यह माना कि सुप्रीम कोर्ट की पूर्व कर्मचारी ने कोर्ट के सबसे बड़े न्यायाधीश पर आरोप लगाए हैं। अब निष्पक्ष जांच की जिम्मेदारी भी सुप्रीम कोर्ट की ही है। महिला किसी हाईकोर्ट में जाकर गुहार तक नहीं लगा सकती है। जस्टिस गोगोई को यह बात भी दर्शानी होगी कि जांच पर उनका कोई दबाव नहीं है। इस मामले में पूर्व न्यायाधीश पटनायक का निर्णय सराहनीय है। सुप्रीम कोर्ट ने वकील उत्सव बैंस के शपथ पत्र पर सुनवाई फिलहाल टाल दी है। बैंस का आरोप है कि जस्टिस गोगोई को फंसाने के लिए कॉरपोरेट लॉबी ने महिला कर्मचारी से आरोप लगवाएं हैं। जस्टिस पटनायक ने साफ कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इन हाउस कमेटी की जांच के बाद ही वे अपनी जांच शुरू करेंगे। जस्टिस गोगोई को अब ऐसी नजीर पेश करनी चाहिए। जो पूरे देश मिसाल कायम करे। आम मामलों में जब पीडि़त महिला के कथन को प्रथम दृष्टि से सही माना जाता है तो फिर सुप्रीम कोर्ट की पूर्व महिला कर्मचारी के आरोपों की भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। पीडि़ता ने तो अपनी बात सबूत के साथ रखी है। अब इन सबूतों को झुठलाने का दायित्व जस्टिस गोगोई का है। पीडि़ता का जांच से हटना भी गोगोई के लिए नई समस्या खड़ी करेगा। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ऐसे आरोप लगाने से आम व्यक्ति को कितनी परेशानी होती होगी। जस्टिस गोगोई तो सीजेआई की कुर्सी पर बैठे हैं। आम आदमी को तो जेल ही जाना होता है। यह सही है कि जब तक आरोप सिद्ध नहीं होते तब तक हर आरोपी निर्दोश है।
(एस.पी.मित्तल)
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट के आदेश और दिशा निर्देश देशभर में नजीर बन जाते हैं। वकीलगण सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और दिशा निर्देशों को सामने रखकर अदालतों से फैसले करवाते हैं। यानि सुप्रीम कोर्ट की हर गतिविधि का देश भर में असर पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई पर जिस पूर्व महिला कर्मचारी ने यौनशोषण के आरोप लगाए हैं वह महिला अब जस्टिा एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन जजों की इन हाउस जांच कमेटी से अलग हो गई है। सीजेआई रंगन गोगोई के साथ काम कर चुकी इस महिला का आरोप है कि जांच कमेटी न्याय नहीं करेगी। उसे जांच कमेटी के समक्ष उपस्थित होने में डर लगता है। सुनवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग भी नहीं करवाई जा रही है। यहां तक उसके पूर्व के बयानों की प्रति भी नहीं दिलवाई जा रही है। यहां यह उल्लेखनीय है कि महिला के आरोप उजागर होते ही जस्टिस गोगोई ने दो जजों के साथ स्वयं सुनवाई की थी और जस्टिा अरुण मिश्रा की अध्यक्ष्ज्ञता में तीन सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया। जस्टिस गोगाई पहले ही ऐसे आरोपों को खारिज कर चुके हैं। इतना ही नहीं जस्टिस गोगोई का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का दबाव डालने के लिए ऐसे आरोप प्रभावशाली लोगों ने लगवाएं हैं। सवाल उठता है कि इन हालातों में आरोपों की जांच हो रही है, क्या पीडि़ता के अनुकूल है? न्याय का सिद्धांत तो यही कहता है कि पीडि़ता को अनुकूल माहौल मिलना चाहिए। हमने कई बार देखा है कि सुप्रीम कोर्ट पीडि़त की मांग पर मुकदमों की सुनवाई संबंधित प्रदेश से बाहर करवाई है। गुजरात के दंगों में मुकदमों की सुनवाई महाराष्ट्र में हुई है। यह माना कि सुप्रीम कोर्ट की पूर्व कर्मचारी ने कोर्ट के सबसे बड़े न्यायाधीश पर आरोप लगाए हैं। अब निष्पक्ष जांच की जिम्मेदारी भी सुप्रीम कोर्ट की ही है। महिला किसी हाईकोर्ट में जाकर गुहार तक नहीं लगा सकती है। जस्टिस गोगोई को यह बात भी दर्शानी होगी कि जांच पर उनका कोई दबाव नहीं है। इस मामले में पूर्व न्यायाधीश पटनायक का निर्णय सराहनीय है। सुप्रीम कोर्ट ने वकील उत्सव बैंस के शपथ पत्र पर सुनवाई फिलहाल टाल दी है। बैंस का आरोप है कि जस्टिस गोगोई को फंसाने के लिए कॉरपोरेट लॉबी ने महिला कर्मचारी से आरोप लगवाएं हैं। जस्टिस पटनायक ने साफ कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इन हाउस कमेटी की जांच के बाद ही वे अपनी जांच शुरू करेंगे। जस्टिस गोगोई को अब ऐसी नजीर पेश करनी चाहिए। जो पूरे देश मिसाल कायम करे। आम मामलों में जब पीडि़त महिला के कथन को प्रथम दृष्टि से सही माना जाता है तो फिर सुप्रीम कोर्ट की पूर्व महिला कर्मचारी के आरोपों की भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। पीडि़ता ने तो अपनी बात सबूत के साथ रखी है। अब इन सबूतों को झुठलाने का दायित्व जस्टिस गोगोई का है। पीडि़ता का जांच से हटना भी गोगोई के लिए नई समस्या खड़ी करेगा। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ऐसे आरोप लगाने से आम व्यक्ति को कितनी परेशानी होती होगी। जस्टिस गोगोई तो सीजेआई की कुर्सी पर बैठे हैं। आम आदमी को तो जेल ही जाना होता है। यह सही है कि जब तक आरोप सिद्ध नहीं होते तब तक हर आरोपी निर्दोश है।
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