प्रसवोत्तर अवधि के दौरान गर्भ निरोध का उपयोग करना महत्वपूर्णः डा. ऋतु शर्मा
देहरादून/हरिद्वार । वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. ऋतु शर्मा ने इस बात पर जोर दिया कि एक महिला के जीवन में प्रसवोत्तर अवधि (प्रसव के बाद छह सप्ताह तक) के दौरान गर्भ निरोध का उपयोग करना महत्वपूर्ण है। नई माताओं को यह पता होना चाहिए कि शिशु जन्म के बाद पहला वर्ष न केवल परिवर्तन, समंजन और अनुकूलन का समय है, बल्कि यह अगली गर्भावस्था की योजना बनाने और अंतर रखने के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, गर्भावस्था और शिशु जन्म के दौरान और बाद में जटिलताओं के परिणाम स्वरूप महिलाओं की मृत्यु हो जाती है।
डॉ. ऋतु शर्मा ने बताया कि लगभग 75 प्रतिशत माताओं की मृत्यु के लिए प्रमुख जटिलताओं में गंभीर रक्तस्राव (आम तौर पर शिशु जन्म के बाद रक्तस्राव होना) और संक्रमण (आम तौर पर शिशु जन्म के बाद) शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य आँकड़े 2018 की रिपोर्ट में बताया गया है कि बच्चे अपने जीवन के पहले सप्ताह में मृत्यु जैसे सबसे बड़े खतरे का सामना करते हैं, 2016 में मरने वाले 26 लाख नवजात शिशुओं की इन मौतों में से-अधिकांश मौतें जीवन के पहले सप्ताह में हुई थीं।प्रसवोत्तर वाली महिलाओं में परिवार नियोजन के उपयोग से माताओं और शिशुओं की मृत्यु दर और रोगों की संख्या में काफी कमी आ सकती है। डॉ. ऋतु शर्मा ने बताया कि एक महिला को अपने और अपने बच्चों की भलाई के लिए दो गर्भावस्थाओं के बीच कम से कम तीन साल का अंतर रखना चाहिए। जन्म देने के बाद गर्भनिरोधक विधि का चयन करते समय, उस महिला को स्तन पान कराने की आवृत्ति, पसंदीदा तरीका जिसे वह इस्तेमाल करना चाहती है या जो उसके पति के लिए भी सुविधाजनक हो, जैसे कारकों पर अवश्य विचार करना चाहिए। इस प्रयोजन के लिए, वह किसी परामर्शकर्ता स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता से परामर्श कर सकती है ताकि वह उस विधि का चयन और उपयोग कर सके जो उसके लिए सबसे सही हो। यह एक गलतफहमी है कि यदि प्रसव के बाद किसी महिला का मासिक धर्म शुरू नही ंहोता है तो वह गर्भवती नहीं हो सकती है य कि स्तन पान कराना गर्भ धारण नहीं करने देता है और गर्भ निरोधक विधियों से बच्चे के विकास पर प्रभाव पड़ता है। जिसके परिणाम स्वरूप, 65ः भारतीय महिलाएं प्रसवोत्तर के समय के दौरान या शिशु जन्म के बाद पहले वर्ष के दौरान किन्हीं भी आधुनिक परिवार नियोजन विधियों का उपयोग नहीं करती हैं। उपयुक्त परिवार नियोजन विधियों के बारे में स्तन पान कराने वाली और स्तन पान न कराने वाली दोनों प्रकार की महिलाओं को सही जानकारी देकर इन मिथकों को ठीक करने की आवश्यकता है।
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