नई दिल्ली। मानसून की धीमी रफ्तार ने किसानों के माथे पर बल डालना शुरु कर दिया है। मानसूनी बारिश के देर से आने को देखते हुए खरीफ सीजन की बुवाई में विलंब होना तय माना जा रहा है। मानसून अपने निर्धारित समय से एक सप्ताह की देरी से चल रहा है। इसे देखते हुए मौसम एजेंसी स्काईमेट ने किसानों के लिए सलाह जारी की है, जिसके मुताबिक बुवाई में देरी के चलते उन्हें अपनी खेती के पैटर्न में थोड़ा बदलाव करना चाहिए। मानसून की बारिश देर से होने की दशा में सोयाबीन की फसल प्रभावित हो सकती है। दक्षिणी राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तरी कर्नाटक और मध्य भारत में खरीफ फसलों की बुवाई में देरी होने की आशंका है। इसका खामियाजा किसानों को उठाना पड़ सकता है। सामान्य तौर पर दक्षिण पश्चिम मानसून एक जून को केरल के तट पर पहुंच जाता है, लेकिन अब इस बार इसमें विलंब हो रहा है।
स्काईमेट के मुताबिक केरल के तट पर मानसून के सात जून तक पहुंचने की उम्मीद है। खरीफ सीजन में देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन का आधा हिस्सा पैदा होता है। खरीफ सीजन की पैदावार का बड़ा दारोमदार मानसून की बारिश पर निर्भर होता है।
मानसून के भरोसे खरीफ सीजन की खेती वाले राज्यों में महाराष्ट्र सबसे आगे हैं, जहां सोयाबीन, अरहर, मूंग, उड़द और कपास बड़ी फसल हैं। इनमें मूंग व अरहर की बुवाई जून के शुरु में ही हो जाती है। राज्य के कई क्षेत्रों में कपास की खेती भी जून के शुरुआत में होती है। लेकिन मानसून की देरी के चलते इन फसलों की बुवाई जून के दूसरे पखवारे में करनी पड़ सकती है। दूसरी मुश्किल यह है कि राज्य के जलाशयों में केवल आठ फीसद पानी बचा हुई है, जिसके बूते खेती संभव नहीं है।
कमोबेश यही हाल आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के किसानों का भी है। यहां मक्का, अरहर और कपास की खेती होती है। इन किसानों के लिए स्काईमेट ने जून के दूसरे सप्ताह में बुवाई करने की सलाह दी है। इन राज्यों के जलाशयों में जलस्तर खतरनाक स्तर से नीचे चला गया है। कहीं पांच तो कहीं 10 फीसद पानी बचा है।
मध्य भारत के मध्य प्रदेश में खरीफ सीजन में सोयाबीन, उड़द, अरहर, मक्का की खेती होती है। इन फसलों के लिए मानसून की बारिश ही सिंचाई का प्रमुख साधन है। मौसम एजेंसी ने किसानों के लिए जारी सलाह में कहा है कि यहां के किसान जून के तीसरे सप्ताह तक बुवाई कर सकते हैं, लेकिन अगैती प्रजाति के फसलों के बीजों का उपयोग करें।
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