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Tuesday, 16 July 2019

आखिर प्रधानमंत्री को हर बार भाजपा सांसदों और मंत्रियों को नसीहत क्यों देनी पड़ती है?

(एस.पी.मित्तल)
नई दिल्ली । 16 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा संसदीय दल की बैठक को संबोधित किया। मोदी ऐसी बैठकों को पहले भी संबोधित कर चुके हैं। 16 जुलाई को भी संसद भवन परिसर में प्रात: 9:30 बजे भाजपा संासदों की बैठक रखी गई। जो सांसद और मंत्री रात को देर से सोते हैं उन्हें सुबह साढ़े 9 बजे संसद भवन आने में खासी परेशानी हुई। इस बैठक में प्रधानमंत्री ने सांसदों और मंत्रियों से कहा कि वे जनसेवक की भूमिका में नजार आएं। 
सांसद अपने संसदीय क्षेत्रों में जाकर केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं में लोगों को अधिक से अधिक लाभ दिलवाएं। मोदी ने आयुष्मान भारत जैसी येाजनाओं को गिनाते हुए कहा कि यदि जरुरतमंद व्यक्ति को लाभ दिलवाया तो वह जिंदगी भर याद रखेगा। मोदी ने कहा कि सांसदों को सरकारी कामकाज में अपनी भागीदारी निभानी चाहिए। लोगों को योजनाओं का लाभ दिलवाने में किसी भी तरह की राजनीति नहीं हों। सांसद अपने क्षेत्र के मतदाताओं से लगातार सम्पर्क में रहे। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब सांसद और मंत्री संसद के रजिस्टर में हस्ताक्षर कर देते हैं तो फिर संसद में बैठते क्यों नहीं हैं? सभी सांसदों और मंत्रियों को सदन चलने तक बैठे रहना चाहिए। मोदी ने संसदीय मंत्री से कहा कि अब सांसदों की उपस्थिति पर विशेष निगरानी रखी जाए। सदन चलने के समय सांसदों का बाहर इधर-उधर घूमना उचित नहीं है। यदि सांसद और मंत्री संसद में बैठेंगे तो जानकारी ही बढ़ेगी। 
सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री को हर बार सांसदों और मंत्रियों को नसीहत क्यों देनी पड़ती हैं? नरेन्द्र मोदी पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो थोड़े अंतराल में ही संसदीय दल की बैठक कर लेते हैं। प्रधानमंत्री की यह पहल अच्छी है, लेकिन इसका असर सांसदों पर होना चाहिए। इस बार 545 में से 303 सांसद अकेले भाजपा के चुने गए हैं। सहयोगी दलों की संख्या 50 के करीब हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा के अधिकांश सांसद नरेन्द्र मोदी के नाम पर जीते हैं, इसलिए प्रधानमंत्री बार बार संसदीय दल की बैठकर बुलाकर सांसदों को जिम्मेदारी का अहसास कराते हैं। मोदी चाहते हैं कि सांसद अपने क्षेत्र में जनसेवक की भूमिका में ही नजर आएं। देखना है कि प्रधानमंत्री की इस बार की नसीहत का सांसदों पर कितना असर होता है। 

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