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Monday, 11 November 2019

अयोध्या फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बंद किए काशी-मथुरा विवाद में कोर्ट के दरवाजे ! आखिर कैसे ? जाने

सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1,045 पेज के फैसले में 11 जुलाई, 1991 को लागू हुए प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप का जिक्र। 
एक्ट, 1991 का जिक्र करते हुए साफ कर दिया कि काशी और मथुरा के संदर्भ में यथास्थिति बरकरार            रहेगी।
 (ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान ) 
                                         नई दिल्ली। अयोध्या मामले पर कोर्ट के फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने देश के तमाम विवादित धर्मस्थलों पर भी अपना रुख स्पष्ट किया।  कोर्ट के फैसले से साफ हो गया कि काशी और मथुरा में धार्मिक स्थलों की मौजूदा स्थिति आगे भी बनी रहेगी। उनमें बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं रही।अयोध्या फैसले के साथ बंद किये सुप्रीम कोर्ट ने  काशी-मथुरा विवाद में कोर्ट के दरवाजे आपको बता दें कि अयोध्या की तरह काशी के विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद  विवाद और मथुरा में भी मस्जिद विवाद सालों से चल रहा है।  सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1,045 पेज के फैसले में 11 जुलाई, 1991 को लागू हुए प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991 का जिक्र करते हुए साफ कर दिया कि काशी और मथुरा के संदर्भ में यथास्थिति बरकरार रहेगी। 
खास बात  -
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शर्मा की उस राय को भी दरकिनार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि धार्मिक स्थलों को लेकर सभी तरह के विवाद कोर्ट में लाए जा सकते हैं।  जस्टिस शर्मा इलाहाबाद हाईकोर्ट की उस बेंच में शामिल थे, जिन्होंने 2010 में अयोध्या मामले पर फैसला दिया था।  उन्होंने कहा था कि प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट लागू होने से पहले के भी धार्मिक स्थल से जुड़े विवाद की इस कानून के तहत सुनवाई की जा सकती है। 
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस शर्मा की इसी बात को कोट करते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस.ए. बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की बेंच ने अपने फैसले में देश के सेक्युलर चरित्र की बात की।  कोर्ट ने शनिवार को अपने फैसले में कहा कि 1991 का यह कानून देश में संविधान के मूल्यों को मजबूत करता है।  बेंच ने कहा, 'देश ने इस एक्ट को लागू करके संवैधानिक प्रतिबद्धता को मजबूत करने और सभी धर्मों को समान मानने और सेक्युलरिज्म को बनाए रखने की पहल की है। 
क्यों बना था ये एक्ट 

दरअसल, 1991 में केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार थी। उनकी सरकार को शायद एक साल पहले ही अयोध्या में बाबरी विध्वंस जैसा कुछ होने की आशंका हो गई थी।  उस वक्त विवाद सिर्फ अयोध्या को लेकर ही नहीं था।  काशी और मथुरा जैसे कई धार्मिक स्थल भी इसमें शामिल थे।  किसी धार्मिक स्थल पर बाबरी विध्वंस जैसा कुछ न हो, इसके लिए उस वक्त (1991 में) एक कानून पास हुआ। 
क्या कहता है 1991 का एक्ट  -

प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट (स्पेशल प्रोविज़न) 1991 ये भी कहता है कि 15 अगस्त 1947 के पहले बने धार्मिक संस्थानों और स्थलों को लेकर कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं होगी. हालांकि, रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इसके दायरे से बाहर रखा गया था. इसलिए इस एक्ट के होते हुए भी अयोध्या मामले पर लंबा केस चला। 
ये एक्ट साफ कहता है कि 15 अगस्त 1947 को भारत की आज़ादी के दिन से धार्मिक स्थानों की जो स्थिति है, वो उसी तरह बरकरार रहेगी।  हालांकि, इस प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट (स्पेशल प्रोविज़न) 1991 में ये भी कहा गया है कि हर धार्मिक विवाद कोर्ट में ट्रायल के लिए लाया जा सकता है। 

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने अयोध्या विवाद पर अपने विस्तृत फैसले में मथुरा-काशी विवाद को विराम देने की बात कही. बेंच ने कहा, 'सार्वजनिक पूजा स्थलों को संरक्षित करने के लिए संसद ने बिना किसी अनिश्चित शब्दों के आदेश दिया है कि इतिहास को वर्तमान और भविष्य में विवाद के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। 








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