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Tuesday, 19 November 2019

साहित्यिक महाकुंभ का उदघाटन सरस्वती पुत्रो को पीछे धकेलकर लक्ष्मी पुत्र ही साहित्यकारों पर हावी रहे। आखिर कैसे ? जाने

* साहित्यिक महाकुंभ :सरस्वती पुत्र पीछे, लक्ष्मी पुत्र आगे
 (डॉ श्रीगोपाल नारसन) 
मेरठ / हरिद्वार। अठ्ठारह नवंबर से तीन दिन के लिए मेरठ के एक निजी विश्वविद्यालय में आयोजित क्रांतिधरा मेरठ साहित्यिक महाकुंभ  में यूं तो देश विदेश के हिंदी एवं विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों ने भाग लिया।लेकिन चाहे पुस्तक प्रदर्शनी का उदघाटन हो या फिर साहित्यिक महाकुंभ का उदघाटन सरस्वती पुत्रो को पीछे धकेलकर लक्ष्मी पुत्र ही साहित्यकारों पर हावी रहे।साहित्यिक महाकुम्भ में आध्यात्मिक क्षेत्र से स्वामी अवधेशानंद भी  सुरक्षा गार्डो के साथ बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे ,साथ ही जैनमुनि लोकेश महाराज ने भी अपनी उपस्थिति विशिष्ट अतिथि के रूप में दर्ज कराई।जाने माने साहित्यकार डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा अरुण,कनाडा  से विश्व हिंदी संस्थान के प्रभारी सरन घई, नेपाल से प्रकाशित हिंदी पत्रिका हिमालिनी की संपादक स्वेता दीप्ति, संचालक राम गोपाल भारतीय,आयोजक विजय पंडित ,नेपाल के साहित्यकार सचिदानंद मिश्र,जाने माने कवि डॉ ईश्वर चन्द गम्भीर, सरोजनी तन्हा,केंद्रीय हिंदी संस्थान से जुड़े दिग्विजयसिंह,विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के उपकुलसचिव डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट, सहारनपुर के विनोद भ्रंग,आगरा से प्रोफेसर सुषमा, रमा शर्मा जापान,कपिल कुमार बेल्जियम ब्रिटेन से जय वर्मा, मारीशस से रामदेव धुरंधर,कोलकाता से
 डॉ वीर सिंह मार्तंड साहित्य त्रिवेणी ,अनिता आर्यन,ब्रह्मानन्द तिवारीआदि की उल्लेखनीय मौजूदगी में जब मंच मेजबान निजी विश्वविद्यालय  ने साहित्यकारों के कार्यक्रम को बीच मे हाई जेक करके अंग्रेजी में संचालन शुरू करवा कर अपने विश्वविद्यालय के बच्चों को मंच पर बुलाकर पुरुस्कृत कराना शुरू किया तो मेरठ के कवि प्रियवर्त शर्मा नाराज हो गए और इसे हिंदी का अपमान बताकर  कार्यक्रम बीच मे ही छोड़कर चले गये।
साहित्य महोत्सव के विशिष्ट अतिथि आचार्य डॉ लोकेश मुनि ने तो साहित्यिक महाकुंभ आयोजक विजय पण्डित को आयोजन का श्रेय देने के बजाय वैन्यू उपलब्ध कराने वाले निजी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति को ही कार्यक्रम का श्रेय दे दिया।उन्होंने कहा कि कटपेस्ट के चलन के कारण मुल लेखन की भावना दमतोड़ रही है।उन्होंने कहा कि आध्यात्म व भौतिकता में संतुलन बनाये रखना जरूरी है।गुरुकुल शिक्षा प्रणाली में संतुलन था, आज यह संतुलन टूट रहा है।व्यक्ति का एनिमल ब्रेन नकारात्मकता की ओर लेकर जा रहा जाए।मूल्यपरक शिक्षा का अभाव ही हमारे पिछड़ेपन का कारण है।यह कहते हुए डॉ लोकेश मुनि ने साहित्य में सकारात्मक सोच विकसित करने की सलाह दी।जूना अखाड़े के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि समाज मे एकता बड़ी आवश्यक है। तभी अपने भीतर के पशु को हम जीत सके।जिस देश मे साहित्यकारों का सम्मान होता है वह देश चिर जीवित रहता है।
उन्होंने ने वैदिक सभ्यता को आदिकाल से जीवित होना बताया।उन्होंने कहा कि साहित्य मे भी मूल्यों का होना जरूरी है।उन्होंने कहा कि जो खुद को अच्छा नही लगता वह दूसरों के लिए न करे।लोकमान्यताओं का भी ध्यान रखे,इस विद्या ने ही हमे जीवंत रखा है।
उन्होंने कहा कि दिनमान, लोट पोट,साप्ताहिक हिंदुस्तान, सन्डे मेल,धर्म युग जैसे अनेक प्रकाशन दम तोड़ चुके है।उन्होंने साहित्यकारों से कहा कि वे पुस्तको को पढ़ना शुरू करे,तकियों के नीचे पुस्तकें रखने व उन्हें पढ़ने की आदत खोने न पाए।पुस्तकों में एक बार झांककर तो देखिए।पुस्तके चलते फिरते सुरज के समान है।शब्द के पास पहुंचने से ही हम रचनाधर्म का पालन कर सकते है। उन्होंने कहा कि लेखक हमेशा जीवित रहता है।व्यास जी आज भी जीवित है।पतंजलि आज भी जीवित है।समस्याओं की जड़ अज्ञानता है।हमारा शत्रु परमाद है।जिससे बचकर रहना होगा।इस अवसर पर अखिल भारतीय स्तर पर साहित्यिक योगदान के लिए शेख अब्दुल बहाव (तमिलनाडु ) धरमजीत सरल,विजय तिवारी (गुजरात )को सम्मानित किया।
तीन दिनों तक चलने वाले इस साहित्यिक महाकुंभ में आधा दर्जन से अधिक देशो के करीब तीन सौ प्रतिनिधि भाग ले रहे है।जो साहित्यिक विमर्श के साथ ही कहानी,कविताओं, उपन्यास, नाटक,लघुकथा, व्यंग्य,हाईकु आदि विधाओं पर संवाद कर रहे है और विभिन्न भाषाई अनुवाद की भी रूप रेखा तैयार की जा रही है।इस साहित्यिक महाकुंभ में नेपाल, भूटान, कनाडा, बेल्जियम, जापान, ब्रिटेन, चीन, तिब्बत, मारीशस देशों से साहित्यकार लेखक और कवि पहुंचे हैं। तीन दिवसीय आयोजन में मुख्य रूप से पुस्तक प्रदर्शनी, साहित्यिक परिचर्चा, पुस्तक विमोचन, समीक्षा, साक्षात्कार, रंगमंच, शोध पत्र, कवि सम्मेलन और सम्मान समारोह विभिन्न सत्रों में आयोजित किया गया।
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