राजस्थान में कांग्रेस का दो पावर सेंटर का फार्मूला फेल। अब पायलट रहें या गहलोत। राहुल के समर्थन का प्रस्ताव राजस्थान में ही क्यों ?
(एस.पी.मित्तल)
29 मई को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने जो बयान दिया है वह राजनीतिक दृष्टि से बहुत मायने रखता है। पायलट ने कहा कि इस बात पर मंथन होना चाहिए कि पांच माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस की जीत हुई तो क्या कारण है कि सरकार होने के बाद भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सभी 25 सीटों पर हार गई। कोई माने या नहीं, लेकिन निशाना मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर था। आज भले ही पायलट लोकसभा चुनाव की हार के लिए गहलोत को जिम्मेदार ठहरा रहे हों, लेकिन डिप्टी सीएम के नाते पायलट भी गहलोत सरकार के हिस्सेदार हैं। पायलट के पास भी पांच विभाग है। असल में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने राजस्थान में दो पावर सेंटर बना दिए। नेतृत्व को उम्मीद थी कि दोनों पावर मिल कर कार्य करेंगे, लेकिन यह फार्मूला फेल हो गया। दिखाने को तो पायलट और गहलोत एक मंत्र पर नजर आए, लेकिन दोनों के मन एक नहीं थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण जोधपुर से गहलोत के पुत्र वैभव की हार है। शीर्ष नेतृत्व के लिए यह चिंता की बात है अब गहलोत और पायलट संयुक्त रूप से हार की जिम्मेदारी नहीं ले रहे हैं।
गहलोत को सीएम बनाने का फैसला गलत:
पांच वर्ष पहले पायलट ने प्रदेशाध्यक्ष की कमान तब संभाली थी जब कांग्रेस के मात्र 21 विधायक थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि पायलट ने मरी हुई कांग्रेस में जान डाली। पंचायतीराज और स्थानीय निकायों के चुनावों में सफलता प्राप्त करते हुए जनवरी 2018 में लोकसभा के दोनों उपचुनाव जीते। सभी को उम्मीद थी कि विधानसभा में बहुमत मिलने पर पायलट ही मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने गहलोत को सीएम बना दिया और उम्मीद जताई कि पायलट पहले की तरह कांग्रेस को मजबूत करते रहेंगे। राजनीति में महत्वकांक्षा कितनी प्रबल होती हैं, यह किसी से भी छिपा नहीं है। गहलोत ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर अपना नाम इतिहास में दर्ज करवा लिया, लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सुपड़ा साफ हो गया। इतनी बुरी दशा की उम्मीद तो गहलोत को भी नहीं थी। यदि विधानसभा चुनाव के बाद पायलट को सीएम बना दिया जाता तो इस हार में उन्हीं का दायित्व होता। तब पायलट यह कहने की स्थिति में नहीं होते कि 5 माह के अंतराल में हार क्यों मिली ? कांग्रेस के पास अब भी समय है जब एक पावर सेंटर को ही जिम्मेदारी दी जाए। मौजूदा हालातों में पायलट को जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, ताकि कार्यकर्ताओं को कहने का अवसर नहीं मिले। यह बात अलग है कि शीर्ष नेतृत्व को पायलट पर गहलोत जितना भरोसा न हो।
राजस्थान में ही प्रस्ताव क्यों ?
कांग्रेस की हार तो पूरे देश में हुई है, लेकिन राहुल गांधी के समर्थन में राजस्थान से ही प्रस्ताव क्यों करवाया गया ? जानकारों की मानें तो राहुल गांधी, सचिन पायलट और अशोक गहलोत की लड़ाई से बेहद खफा हैं। राहुल का मानना है कि इन दोनों की लड़ाई का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा हैं यही वजह रही कि एकता दिखाने के लिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठक पर प्रस्ताव पास कर राहुल गांधी से अध्यक्ष बने रहने का आग्रह किया गया। गहलोत और पायलट ने यह कवायद खुद को राहुल गांधी की नाराजगी से बचाने के लिए की है। देखना होगा कि इस कवायद का राहुल गांधी पर कितना असर होता है।
(एस.पी.मित्तल)
29 मई को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने जो बयान दिया है वह राजनीतिक दृष्टि से बहुत मायने रखता है। पायलट ने कहा कि इस बात पर मंथन होना चाहिए कि पांच माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस की जीत हुई तो क्या कारण है कि सरकार होने के बाद भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सभी 25 सीटों पर हार गई। कोई माने या नहीं, लेकिन निशाना मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर था। आज भले ही पायलट लोकसभा चुनाव की हार के लिए गहलोत को जिम्मेदार ठहरा रहे हों, लेकिन डिप्टी सीएम के नाते पायलट भी गहलोत सरकार के हिस्सेदार हैं। पायलट के पास भी पांच विभाग है। असल में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने राजस्थान में दो पावर सेंटर बना दिए। नेतृत्व को उम्मीद थी कि दोनों पावर मिल कर कार्य करेंगे, लेकिन यह फार्मूला फेल हो गया। दिखाने को तो पायलट और गहलोत एक मंत्र पर नजर आए, लेकिन दोनों के मन एक नहीं थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण जोधपुर से गहलोत के पुत्र वैभव की हार है। शीर्ष नेतृत्व के लिए यह चिंता की बात है अब गहलोत और पायलट संयुक्त रूप से हार की जिम्मेदारी नहीं ले रहे हैं।
गहलोत को सीएम बनाने का फैसला गलत:
पांच वर्ष पहले पायलट ने प्रदेशाध्यक्ष की कमान तब संभाली थी जब कांग्रेस के मात्र 21 विधायक थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि पायलट ने मरी हुई कांग्रेस में जान डाली। पंचायतीराज और स्थानीय निकायों के चुनावों में सफलता प्राप्त करते हुए जनवरी 2018 में लोकसभा के दोनों उपचुनाव जीते। सभी को उम्मीद थी कि विधानसभा में बहुमत मिलने पर पायलट ही मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने गहलोत को सीएम बना दिया और उम्मीद जताई कि पायलट पहले की तरह कांग्रेस को मजबूत करते रहेंगे। राजनीति में महत्वकांक्षा कितनी प्रबल होती हैं, यह किसी से भी छिपा नहीं है। गहलोत ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर अपना नाम इतिहास में दर्ज करवा लिया, लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सुपड़ा साफ हो गया। इतनी बुरी दशा की उम्मीद तो गहलोत को भी नहीं थी। यदि विधानसभा चुनाव के बाद पायलट को सीएम बना दिया जाता तो इस हार में उन्हीं का दायित्व होता। तब पायलट यह कहने की स्थिति में नहीं होते कि 5 माह के अंतराल में हार क्यों मिली ? कांग्रेस के पास अब भी समय है जब एक पावर सेंटर को ही जिम्मेदारी दी जाए। मौजूदा हालातों में पायलट को जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, ताकि कार्यकर्ताओं को कहने का अवसर नहीं मिले। यह बात अलग है कि शीर्ष नेतृत्व को पायलट पर गहलोत जितना भरोसा न हो।
राजस्थान में ही प्रस्ताव क्यों ?
कांग्रेस की हार तो पूरे देश में हुई है, लेकिन राहुल गांधी के समर्थन में राजस्थान से ही प्रस्ताव क्यों करवाया गया ? जानकारों की मानें तो राहुल गांधी, सचिन पायलट और अशोक गहलोत की लड़ाई से बेहद खफा हैं। राहुल का मानना है कि इन दोनों की लड़ाई का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा हैं यही वजह रही कि एकता दिखाने के लिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठक पर प्रस्ताव पास कर राहुल गांधी से अध्यक्ष बने रहने का आग्रह किया गया। गहलोत और पायलट ने यह कवायद खुद को राहुल गांधी की नाराजगी से बचाने के लिए की है। देखना होगा कि इस कवायद का राहुल गांधी पर कितना असर होता है।
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