(एस.पी.मित्तल)
4 जुलाई को कोलाकाता के कृष्ण भक्तों को तब अजूबा लगा जब टीएमसी की सांसद नुसरत जहां, उनके पति निखिल जैन और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भारत की सनातन संस्कृति के अनुरूप भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना की और जमीन पर नारियल भी फोड़ा। बाद में तीनों ने कृष्ण भक्तों के साथ जगन्नाथ यात्रा का रथ भी खींचा। इस धार्मिक समारोह में ममता ने जब जगन्नाथ का उद्घोष भी किया। वहीं नुसरत जहां का कहना रहा कि मैं पैदाईशी मुसलमान हंू, लेकिन सभी मजहबों का सम्मान करती हंू। नुसरत ने सनातन संस्कृति के अनुरूप ही गले में मंगल सूत्र और सिर में सिन्दूर भर रखा था। बंगाली परपंरा के अनुरूप साड़ी पहनी, नुसरत जहां का किसी खास धर्म से कोई सरोकार नहीं था। निखिल जैन से विवाह के बाद से ही नुसरत भारतीय संस्कृति का निर्वाह कर रही हैं। इसी अंदाज में नुसरत ने टीएमसी सांसद के तौर पर लोकसभा में शपथ भी ली। तब पुलिस कट्टरपंथियों ने नुसरत की कड़ी आलोचना की। तब यह माना गया कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की जो मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति है उसे नुसरत जहां नुकसान पहुचाएंगी। हो सकता है कि ममता बनर्जी अपनी ओर से नुसरत को हिदायतें भी दें, लेकिन 4 जुलाई को उल्टा हो गया। ममता बनर्जी को खुद नुसरत जहां के साथ खड़ी हो गई। इसलिए अब प्रतीत हो रहा है कि नुसरत जहां तो ममता बनर्जी का सोफ्ट चेहरा है। नुसरत को आगे रखकर हिन्दू वोट बैंक को भी खुश किया जा सकता है। असल में ममता को चेहरे पर चेहरा लगाने की जरुरत इसलिए पड़ी कि लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल की ममता और उनकी तृणमूल कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचा। जिन ममता के लोकसभा में 32 सांसद थे उनके पास अब मात्र 22 सांसद रह गए, जबकि बंगाल में भाजपा सांसदों की संख्या दो से बढ़कर कर 18 हो गई। इसलिए जब ममता बनर्जी को उन नुसरत जहां की मदद चाहिए जिसने हिन्दू युवक से विवाह सनातन संस्कृति अपनाई है। जयश्रीराम के नारे से चिढऩे वाली ममता अब भगवान जगन्ननाथ का रथ खींच रही हैं। पश्चिम बंगाल के मतदाताओं को इन सब बातों का ख्याल रखना चाहिए कि बंगाल में 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं।
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