भारत की आज की ना सिर्फ संवैधानिक और कानूनी बल्कि सामाजिक और राजनीतिक सोच का भी मूलाधार है, वह भी जम्मू-कश्मीर में नहीं पहुंच पाए ।
(विशाल शर्मा)
गत 7 दशकों में भारत की न्याय व्यवस्था ने कई संवैधानिक और कानूनी आयामों को तय किया है। अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू कश्मीर उन संवैधानिक आयामों को प्राप्त नहीं कर पाया और इस विकास यात्रा में पिछड़ गया। यूं तो ऐसे बहुत सारे कानून और संविधान के प्रावधान हैं जो जम्मू कश्मीर में लागू नहीं हो पाए परंतु कुछ ऐसे प्रावधान है जो कि भारत की आज की ना सिर्फ संवैधानिक और कानूनी बल्कि सामाजिक और राजनीतिक सोच का भी मूलाधार है, वह भी जम्मू-कश्मीर में नहीं पहुंच पाए । उनमें से एक ऐसा प्रावधान है धरसमनिर्पेक्षता ।जिसको लेकर इस देश की राजनीति में कई राजनीतिक पार्टियों ने राजनीतिक रोटियां तो बहुत सेकी हैं परंतु कभी भी उसे सच्चे रूप में लागू करने का प्रयास नहीं किया। यूं तो धर्मनिरपेक्षता हिंदू संस्कृति और हिंदू धर्म का आधार है परंतु यह खुले रूप से तब चरितार्थ हुआ जब भारत का विभाजन धर्म के आधार पर होने के बावजूद भी गैर हिंदू धर्मावलंबियों को भारत में किसी भी प्रकार से कम धार्मिक अधिकार नहीं दिए गए। बल्कि धार्मिक अल्पसंख्यकों को कुछ विशेष अधिकार भी दिए गए।
परंतु फिर भी वामपंथियों के दबाव में श्रीमती इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन के द्वारा भारत के संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ दिया था। परंतु यह प्रावधान जम्मू कश्मीर में लागू नहीं किया गया। क्योंकी अनुच्छेद 370 के कारण संविधान के किसी भी संशोधन को जम्मू कश्मीर में लागू करना या न करना वहां के राजनीतिक परिवारों की मर्जी पर निर्भर था। इसलिए जहां संविधानिक रूप में भारत 1976 से धर्मनिरपेक्ष हो गया था, जम्मू कश्मीर 6 अगस्त, 2019 तक भी एक गैर धर्मनिरपेक्ष राज्य था। वहां हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार और कट्टर सुन्नी मुस्लिम सोच को बढ़ावा दिया जाना एक प्रकार से संवैधानिक रूप से मान्य था। इसके ऊपर कोई रोक नहीं थी ऐसे में जम्मू कश्मीर सरकार के सांप्रदायिक निर्णय पर रोक लगाने का न्यायालय के पास भी कोई अधिकार नहीं था। क्योंकि धर्मनिरपेक्षता वहां पर लागू ही नहीं होती थी। वो अपनी मर्जी के अनुसार जम्मू कश्मीर राज्य को कट्टरपंथी वहाबी और सलाफी सोच के आधार पर चला सकते थे।
जिस प्रकार से जमात ए इस्लामी के कार्यकर्ताओं को सरकारी स्कूलों में अध्यापक बना दिया गया और उनके द्वारा एक पूरी पीढ़ी के बच्चों में कट्टरवादी और अलगाववादी सोच का विष बोया गया वो सर्वविदित है। धर्मनिरपेक्ष सोच रखने वाले सूफी इस्लाम को समाप्त कर दिया गया। 1990 में जिन लोगों ने कश्मीरी हिंदुओं को हत्याओं और बलात्कारों का दौर चला कर घाटी से भागने पर मजबूर किया उनके खिलाफ आज तक एक भी मुकदमा जम्मू कश्मीर की सरकार ने नहीं चलाया। अगर किसी पर चलाना भी पढ़ा तो वह मुकदमा आज तक पूरा नहीं हुआ, और लंबी लंबी जमानत देकर उन लोगों को एक किस्म से रिहा ही कर दिया गया। उदाहरण के तौर पर बिट्टा कराटे नामक आतंकवादी कि एक पत्रकार को दी गई इंटरव्यू सोशल मीडिया में बड़ी आसानी से मिल जाती है। जिसमें वह कहता है कि उसने कम से कम 6 लोगों का कत्ल किया है जिनके नाम उसको याद हैं बाकियों के याद नहीं। उस व्यक्ति को भी आज तक जम्मू कश्मीर की सरकार ने सजा नहीं दिलवाई। यह सब इसी कारण था कि वहां पर धर्मनिरपेक्षता लागू ही नहीं होती थी। अचम्भा इस बात का होता है कि इस देश में तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के झंडा बरदार राजनीतिक दल कभी भी इस बात पर न तो चिंता करते हैं ना चिंतन करते हैं।
आज जबकि अनुच्छेद 370 हटने से भारत के संविधान के सभी प्रावधान जम्मू कश्मीर में लागू हो गए हैं और उनके साथ साथ धर्मनिरपेक्षता भी वहां पर लागू हो गई है तो यह दिन धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करने वाले लोगों के लिए एक बहुत बड़ा दिन होना चाहिए था। परंतु इसकी चर्चा कहीं पर भी नहीं है। इसी से सिद्ध होता है कि चाहे कांग्रेस पार्टी हो या वामपंथी हो इन लोगों ने राजनीति में धर्मनिरपेक्षता का नाम ले लेकर हमेशा जिहादी कट्टरपंथ, अलगाववाद और आतंकवाद को ही बढ़ावा दिया है तथा उसका बचाव किया है। धर्मनिरपेक्षता इन के लिए सिर्फ एक ऐसा राजनीतिक नारा था जिससे यह स्वभाव से धर्मनिरपेक्ष भोले भाले हिंदुओं को मूर्ख बनाने के काम में लगे रहते थे। और हिंदू अपने ही उन भाइयों को संप्रदायिक समझने लग जाते थे जो कि मुस्लिम कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज उठाते थे। आवश्यकता है कि हम सब मिलकर इस चीज को सामने लाएं कि जम्मू कश्मीर आज सही रूप से धर्मनिरपेक्ष हुआ है। आज वहां हुर्रियत कांफ्रेंस के ऊपर पाबंदी लग जानी चाहिए जिसकी आधिकारिक वेबसाइट के ऊपर जिहाद एंव कश्मीर मे निजाम ए मुस्तफा कायम करने जैसी चीजें लिखी हुई है।
वही जेकेएलएफ का सरगना यासीन मलिक जो बीबीसी को दिए अपने टीवी इंटरव्यू में खुद ही एयरफोर्स के अधिकारियों की हत्या का गुनाह कबूल कर चुका है और कल तक जम्मू कश्मीर में आजाद घूमता था। उसे राष्ट्रपति शासन में केवल जेल में डाला गया है। अब उसके ऊपर उन हत्याओं का मुकदमा चलाकर उसे फांसी पर लटकाया जाना चाहिए। यह समय है कि देश की सब सच्ची धर्मनिरपेक्ष ताकतों को चाहे हिंदू हो या फिर मुसलमान मोदी जी के पीछे खड़ा होना चाहिए। फिर चाहे वो किसी भी राजनीतिक पार्टी के राजनेता हों, अगर उनका जमीर और अंतरात्मा अभी जिंदा है और उनका धर्म निरपेक्षता में विश्वास है उनको भारत सरकार के हाथ मजबूत करने चाहिए। ताकि जम्मू कश्मीर से सांप्रदायिक हत्याएं और सांप्रदायिक अत्याचार करने वाले लोगों को खत्म किया जा सके। यह समय इस कट्टरवादी सोच के कचरे को साफ करने का है। यह समय जम्मू कश्मीर में भी धर्मनिरपेक्षता की शुरुआत का स्वागत करने का है।
( लेखक ,जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र देहरादून में विधि विशेषज्ञ है )
(विशाल शर्मा)
गत 7 दशकों में भारत की न्याय व्यवस्था ने कई संवैधानिक और कानूनी आयामों को तय किया है। अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू कश्मीर उन संवैधानिक आयामों को प्राप्त नहीं कर पाया और इस विकास यात्रा में पिछड़ गया। यूं तो ऐसे बहुत सारे कानून और संविधान के प्रावधान हैं जो जम्मू कश्मीर में लागू नहीं हो पाए परंतु कुछ ऐसे प्रावधान है जो कि भारत की आज की ना सिर्फ संवैधानिक और कानूनी बल्कि सामाजिक और राजनीतिक सोच का भी मूलाधार है, वह भी जम्मू-कश्मीर में नहीं पहुंच पाए । उनमें से एक ऐसा प्रावधान है धरसमनिर्पेक्षता ।जिसको लेकर इस देश की राजनीति में कई राजनीतिक पार्टियों ने राजनीतिक रोटियां तो बहुत सेकी हैं परंतु कभी भी उसे सच्चे रूप में लागू करने का प्रयास नहीं किया। यूं तो धर्मनिरपेक्षता हिंदू संस्कृति और हिंदू धर्म का आधार है परंतु यह खुले रूप से तब चरितार्थ हुआ जब भारत का विभाजन धर्म के आधार पर होने के बावजूद भी गैर हिंदू धर्मावलंबियों को भारत में किसी भी प्रकार से कम धार्मिक अधिकार नहीं दिए गए। बल्कि धार्मिक अल्पसंख्यकों को कुछ विशेष अधिकार भी दिए गए।
परंतु फिर भी वामपंथियों के दबाव में श्रीमती इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन के द्वारा भारत के संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ दिया था। परंतु यह प्रावधान जम्मू कश्मीर में लागू नहीं किया गया। क्योंकी अनुच्छेद 370 के कारण संविधान के किसी भी संशोधन को जम्मू कश्मीर में लागू करना या न करना वहां के राजनीतिक परिवारों की मर्जी पर निर्भर था। इसलिए जहां संविधानिक रूप में भारत 1976 से धर्मनिरपेक्ष हो गया था, जम्मू कश्मीर 6 अगस्त, 2019 तक भी एक गैर धर्मनिरपेक्ष राज्य था। वहां हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार और कट्टर सुन्नी मुस्लिम सोच को बढ़ावा दिया जाना एक प्रकार से संवैधानिक रूप से मान्य था। इसके ऊपर कोई रोक नहीं थी ऐसे में जम्मू कश्मीर सरकार के सांप्रदायिक निर्णय पर रोक लगाने का न्यायालय के पास भी कोई अधिकार नहीं था। क्योंकि धर्मनिरपेक्षता वहां पर लागू ही नहीं होती थी। वो अपनी मर्जी के अनुसार जम्मू कश्मीर राज्य को कट्टरपंथी वहाबी और सलाफी सोच के आधार पर चला सकते थे।
जिस प्रकार से जमात ए इस्लामी के कार्यकर्ताओं को सरकारी स्कूलों में अध्यापक बना दिया गया और उनके द्वारा एक पूरी पीढ़ी के बच्चों में कट्टरवादी और अलगाववादी सोच का विष बोया गया वो सर्वविदित है। धर्मनिरपेक्ष सोच रखने वाले सूफी इस्लाम को समाप्त कर दिया गया। 1990 में जिन लोगों ने कश्मीरी हिंदुओं को हत्याओं और बलात्कारों का दौर चला कर घाटी से भागने पर मजबूर किया उनके खिलाफ आज तक एक भी मुकदमा जम्मू कश्मीर की सरकार ने नहीं चलाया। अगर किसी पर चलाना भी पढ़ा तो वह मुकदमा आज तक पूरा नहीं हुआ, और लंबी लंबी जमानत देकर उन लोगों को एक किस्म से रिहा ही कर दिया गया। उदाहरण के तौर पर बिट्टा कराटे नामक आतंकवादी कि एक पत्रकार को दी गई इंटरव्यू सोशल मीडिया में बड़ी आसानी से मिल जाती है। जिसमें वह कहता है कि उसने कम से कम 6 लोगों का कत्ल किया है जिनके नाम उसको याद हैं बाकियों के याद नहीं। उस व्यक्ति को भी आज तक जम्मू कश्मीर की सरकार ने सजा नहीं दिलवाई। यह सब इसी कारण था कि वहां पर धर्मनिरपेक्षता लागू ही नहीं होती थी। अचम्भा इस बात का होता है कि इस देश में तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के झंडा बरदार राजनीतिक दल कभी भी इस बात पर न तो चिंता करते हैं ना चिंतन करते हैं।
आज जबकि अनुच्छेद 370 हटने से भारत के संविधान के सभी प्रावधान जम्मू कश्मीर में लागू हो गए हैं और उनके साथ साथ धर्मनिरपेक्षता भी वहां पर लागू हो गई है तो यह दिन धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करने वाले लोगों के लिए एक बहुत बड़ा दिन होना चाहिए था। परंतु इसकी चर्चा कहीं पर भी नहीं है। इसी से सिद्ध होता है कि चाहे कांग्रेस पार्टी हो या वामपंथी हो इन लोगों ने राजनीति में धर्मनिरपेक्षता का नाम ले लेकर हमेशा जिहादी कट्टरपंथ, अलगाववाद और आतंकवाद को ही बढ़ावा दिया है तथा उसका बचाव किया है। धर्मनिरपेक्षता इन के लिए सिर्फ एक ऐसा राजनीतिक नारा था जिससे यह स्वभाव से धर्मनिरपेक्ष भोले भाले हिंदुओं को मूर्ख बनाने के काम में लगे रहते थे। और हिंदू अपने ही उन भाइयों को संप्रदायिक समझने लग जाते थे जो कि मुस्लिम कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज उठाते थे। आवश्यकता है कि हम सब मिलकर इस चीज को सामने लाएं कि जम्मू कश्मीर आज सही रूप से धर्मनिरपेक्ष हुआ है। आज वहां हुर्रियत कांफ्रेंस के ऊपर पाबंदी लग जानी चाहिए जिसकी आधिकारिक वेबसाइट के ऊपर जिहाद एंव कश्मीर मे निजाम ए मुस्तफा कायम करने जैसी चीजें लिखी हुई है।
वही जेकेएलएफ का सरगना यासीन मलिक जो बीबीसी को दिए अपने टीवी इंटरव्यू में खुद ही एयरफोर्स के अधिकारियों की हत्या का गुनाह कबूल कर चुका है और कल तक जम्मू कश्मीर में आजाद घूमता था। उसे राष्ट्रपति शासन में केवल जेल में डाला गया है। अब उसके ऊपर उन हत्याओं का मुकदमा चलाकर उसे फांसी पर लटकाया जाना चाहिए। यह समय है कि देश की सब सच्ची धर्मनिरपेक्ष ताकतों को चाहे हिंदू हो या फिर मुसलमान मोदी जी के पीछे खड़ा होना चाहिए। फिर चाहे वो किसी भी राजनीतिक पार्टी के राजनेता हों, अगर उनका जमीर और अंतरात्मा अभी जिंदा है और उनका धर्म निरपेक्षता में विश्वास है उनको भारत सरकार के हाथ मजबूत करने चाहिए। ताकि जम्मू कश्मीर से सांप्रदायिक हत्याएं और सांप्रदायिक अत्याचार करने वाले लोगों को खत्म किया जा सके। यह समय इस कट्टरवादी सोच के कचरे को साफ करने का है। यह समय जम्मू कश्मीर में भी धर्मनिरपेक्षता की शुरुआत का स्वागत करने का है।
( लेखक ,जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र देहरादून में विधि विशेषज्ञ है )
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