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Sunday, 1 September 2019

शोध द्वारा खुलासा,हरिद्वार से लेकर पश्चिम बंगाल तक गंगा नदी का केवल 18 प्रतिशत हिस्सा ही बेहतर ।आखिर कैसे ?जाने

बिजनौर से नरोरा तक करीब 150 किलोमीटर क्षेत्र में गंगा की सेहत सबसे बेहतर पाई गई।

(ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान ) 

नई दिल्ली /देहरादून / हरिद्वार | हरिद्वार से लेकर पश्चिम बंगाल तक गंगा नदी का केवल 18 प्रतिशत हिस्सा बेहतर है ,जी हाँ सिर्फ  18 प्रतिशत हिस्सा ही ऐसा है, जिसे जलीय जीवों के रहने, प्रदूषण की मात्रा कम होने आदि के आधार पर बेहतर पाया गया है। यह वह क्षेत्र है जो मनुष्यो से बहार है ,अर्थात जहां संरक्षित वन क्षेत्र या अभ्यारण्य हैं।

नमामि गंगे परियोजना के तहत परियोजना वैज्ञानिक डॉ.शिवानी बड़थ्वाल के मुताबिक पश्चिम बंगाल में नवदीप क्षेत्र का सिर्फ पांच किमी का क्षेत्र गंगा में जलीय जीवो के लिए बेहतर व् उत्तम पाया गया है | 

इसी तरह बिजनौर से नरोरा तक करीब 150 किलोमीटर क्षेत्र में गंगा की सेहत सबसे बेहतर पाई गई।  
 इन क्षेत्रों में खनन नहीं हो रहा है और यहां संरक्षित क्षेत्र हैं। उत्तर प्रदेश में फर्रुखा बैराज में पानी रुकने की वजह से कानपुर, वाराणसी आदि में गंगा की सेहत खराब पाई गई।

निचले क्षेत्र में सबसे हानिकारक तत्व

परियोजना सहायक रुचिका शाह के मुताबिक गंगा के निचले क्षेत्र में सबसे अधिक हानिकारक  तत्व पाए गए। डीडीटी सहित 13 प्रतिबंधित कीटनाशक गंगा के पानी में पाए गए। पानी सबसे अधिक प्रदूषण रहित उन क्षेत्रों में पाया गया, जहां किसी न किसी का संगम गंगा से हो रहा है। इसके अलावा निकिल, कोबाल्ट जैसे भारी तत्व भी गंगा के पानी में पाए गए।   

उत्तराखंड में भी गंगा में पाए गए प्रतिबंधित कीटनाशक
शाह के मुताबिक इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि मध्य गंगा क्षेत्र से बारिश के साथ यह कीटनाशक उत्तराखंड में पहुंच गए। डीडीटी सहित ये प्रतिबंधित कीटनाशक लंबे समय तक विघटित नहीं होते।                    
पश्चिम बंगाल में गंगा की सेहत सबसे खराब
 नमामि गंगे की प्रोजेक्ट एसोसिएट रुचिका शाह के शोध से सामने आया कि पश्चिम बंगाल में गंगा की सबसे खराब हालत है। यहां प्रतिबंधित कीटनाशक अधिक मात्रा में पाए गए। इसका कारण यह भी है कि पश्चिम बंगाल में गंगा के किनारे खासी खेती होती है। यहां मौजूद सुंदरवन जैव विविध क्षेत्र के संयुक्त निदेशक डा. एस कुलनदेवल ने संस्थान से आग्रह किया कि इस रिपोर्ट को पश्चिम बंगाल की सरकार को तुरंत भेजा जाए। 

90 प्रतिशत गंगा का पानी हो रहा खर्च

गंगा नदी का करीब 90 प्रतिशत पानी औद्योगिक, सिंचाई और घरेलू उपयोग में खर्च हो रहा है। भारतीय वन्यजीव संस्थान में आयोजित नमामि गंगे सेमीनार के उद्घाटन सत्र में संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक और नमामि गंगे परियोजना से जुडे़ डा. एसए हुसैन ने कहा कि यह स्थिति चिंताजनक है। 
क्या कहते है डा. अनिल जोशी
वही हैस्को के संस्थापक निदेशक और पद्मश्री डा. अनिल जोशी ने कहा कि नदियां बचेंगी तो हम बचेंगे। नदियां ही हमारा वर्तमान और भविष्य हैं। उन्होंने कहा कि संस्थानों को शोध धरातल पर उतारना चाहिए। शोध ऐसा हो जिसका व्यवहार में उपयोग किया जा सके। शहरों का शिक्षित वर्ग अधिक से अधिक उपभोग की कोशिश तो करता है लेकिन बदले में बहुत कम देता है। इससे असंतुलन पैदा हो रहा है।   

नमामि गंगे अभियान के दूसरे चरण की तैयारी शुरू

नमामि गंगे अभियान के दूसरे चरण के तहत अब गंगा नदी के जल संग्रहण क्षेत्र की सहायक नदियों, धाराओं की जलीय विविधता के संरक्षण के लिए एक्शन प्लान तैयार किया जाएगा। जल शक्ति मंत्रालय ने इसको हरी झंडी दे दी है और भारतीय वन्यजीव संस्थान ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। अभियान का दूसरा चरण जनवरी 2020 में अधिकारिक रूप से घोषित किया जाएगा।
नमामि गंगे परियोजना से जुड़े वैज्ञनिकों के मुताबिक 2016 में नमामी गंगे अभियान का पहला चरण शुरू किया गया था। इसके तहत मध्य गंगा से लेकर निचली गंगा तक नदी के जलीय जीवों की जानकारी हासिल की गई, गंगा की सेहत नापी गई और सामुदायिक सहयोग से संरक्षण कार्य किए गए। पहले चरण में यह चुनौती भी उभर कर सामने आई कि घनी मानव आबादी वाले क्षेत्रों में नदी को संरक्षित कैसे रखा जाए।                                इसके तहत रेस्क्यू सेंटर स्थापित किए गए, भारतीय वन्यजीव संस्थान में गंगा संरक्षण केंद्र स्थापित किया गया और संबंधित पक्षों को गंगा संरक्षण के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराया गया। करीब 500 गंगा प्रहरी तैयार किए गए हैं और 115 ग्राम पंचायतों को नदी संरक्षण कार्य में सक्रिय रूप से शामिल किया गया है। गंगा के करीब 1100 किलोमीटर के प्रवाह में करीब 140 किलोमीटर नदी में प्रचुर मात्रा में जलीय जीव पाए गए। यह घनी आबादी वाले क्षेत्र भी हैं और अब चुनौती यह है कि इन क्षेत्रों में मानव गतिविधियों के दबाव के बीच संरक्षण के काम को कैसे अंजाम दिया जाए। 

सौ और शोधार्थियों की जरूरत
नमामि गंगे के दूसरे चरण में विभिन्न अध्ययनों के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान को करीब सौ और शोधार्थियों की जरूरत होगी। पहले चरण में संस्थान ने करीब इतने ही शोध करने वालों, वैज्ञानिकों आदि का सहयोग लिया था। 

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