श्रद्धाजंलि
उनकी अंतर्राष्ट्रीय भूकम्प विज्ञान सेवाओ के लिए दस लाख रुपये का मैग्सेसे पुरुस्कार मिला था।
चला गया डोलती धरती का रक्षक दानवीर प्रोफेसर आनन्द स्वरूप आर्य
प्रख्यात भूकंप वैज्ञानिक प्रो. आनंद स्वरूप आर्य अब हमारे बीच नहीं रहे है।उनके निधन से शिक्षा जगत ही नही अपितु समाजसेवा का क्षेत्र भी गमगीन हुआ है।डॉक्टर आनंद स्वरूप आर्य के निधन से रुड़की को गहरा आघात लगा है। प्रोफेसर आर्य ने न सिर्फ भारत अपित पूरे विश्व के लिए अपना अमूल्य योगदान दिया है। वे एक महान देशभक्त तथा अद्वितीय वैज्ञानिक थे। उनकी सादगी और समाज के लिए सदैव कुछ करने की भावना व लग्न के कारण उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा।
भूकम्प विज्ञान के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय व्यक्तित्व प्रोफेसर आनन्द स्वरूप आर्य जहां तत्कालीन रुड़की विश्वविद्यालय अब आईआईटी में भूकम्प विज्ञान के प्रोफेसर व प्रतिकुलपति रहे। वही उनकी गिनती दुनिया के मशहूर भूकम्प वैज्ञानिक के रूप में होती थी।उत्तर प्रदेश के सहारनपुर अंतर्गत अंबेहटा में जन्मे प्रोफेसर आनन्द स्वरूप आर्य ने अपने जीवन का अधिकांश समय रुड़की में बिताया। लेकिन जीवन के अवसान के समय वे दिल्ली जाकर बस गए थे।प्रोफेसर आर्य को लगभग बीस वर्ष पहले उनकी अंतर्राष्ट्रीय भूकम्प विज्ञान सेवाओ के लिए दस लाख रुपये का मैग्सेसे पुरुस्कार मिला था,उन्होंने उक्त दस लाख रुपये की बीस साल पहले की भारी भरकम राशि पुरुस्कार राशि विश्विद्यालय को दान कर दी थी।उन्होंने रुड़की में ही सरस्वती विद्या मंदिर विद्यालय खोलने के लिए भूमि दान की तो राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय व राजकीय होम्योपैथी चिकित्सालय खोलने के लिए इसी वर्ष भूमि दान की थी।भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से विभूषित प्रोफेसर आर्य से अनेक बार मिलने का अवसर मिला।वे हमेशा अपनत्व का व्यवहार करते और कभी भी बिना चाय पिये घर से नही जाने देते थे।वे मानते थे कि भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में पुरानी इमारतों को भूकंपरोधी बनाया जाना वैज्ञानिकों के लिए चुनौतीपूर्ण है।
उन्होंने भूकंप के बाद क्षतिग्रस्त भवनों को ध्वस्त करने की संस्तुति किए जाने की प्रवृत्ति से बचने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा था कि कोई भी वैज्ञानिक शोध आम आदमी की जरूरत को ध्यान में रखकर होना चाहिए। उन्होंने वैज्ञानिक शोध के क्षेत्र में प्रकाशित होने वाले जनरल के कुछ हिस्सो को हिंदी भाषा में दिए जाने की प्रकाशित किये जाने की वकालत की थी।प्रोफेसर आर्य कहते थे कि भूकंप की भविष्यवाणी नही की जा सकती है और न ही भूकंप को आने से रोका जा सकता है।केवल सावधानी ही बचाव है।यानि भूकंप रोधि भवन निर्माण करके भूकंप से होने वाली जानमाल की क्षति कम की जा सकती है।
शोध, डिजाइन तथा परामर्श कार्य के अपने लंबे तथा विशिष्ट रिकार्ड के साथ डॉ. आनन्द स्वरूप आर्य वर्ष 1953 से स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग, भूकंप इंजीनियरिंग , सोइल व फाउंडेशन इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ रहे । उनको सन1986 में फिक्की ( फैड़रेशन ऑफ इंडियन चैम्बरर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री) अवार्ड तथा सन 1987 में इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) का राष्ट्रीय डिजाइन अवार्ड प्राप्त हो चुका है । यूनेस्को तथा अन्य अनेक अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों में उनके द्वारा सह्भागिता की गई तथा भूकंप इंजीनियरी के विशेषज्ञ के रूप में अनेकों अंतर्राष्ट्रीय
प्रतिनिधिमंड़लों के वे सदस्य रहे हैं । वर्ष 1977-80 तथा वर्ष 1980-84 में प्रोफेसर आर्य भूकंप इंजीनियरी के अंतर्राष्ट्रीय संघ के निदेशक भी रहे । भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी तथा भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियरिंग अकादमी के फैलो होने के साथ ही उन्हें प्रधानमंत्री के आपदा प्रबंधन सलाहकार होने का सौभाग्य भी मिला।उन्हें बिहार सरकार ने आपदा सलाहकार नियुक्त कर कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया था।
प्रतिनिधिमंड़लों के वे सदस्य रहे हैं । वर्ष 1977-80 तथा वर्ष 1980-84 में प्रोफेसर आर्य भूकंप इंजीनियरी के अंतर्राष्ट्रीय संघ के निदेशक भी रहे । भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी तथा भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियरिंग अकादमी के फैलो होने के साथ ही उन्हें प्रधानमंत्री के आपदा प्रबंधन सलाहकार होने का सौभाग्य भी मिला।उन्हें बिहार सरकार ने आपदा सलाहकार नियुक्त कर कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया था।
News1 Hindustan परिवार की ओर से डोलती धरती के रक्षक को भावभीनी श्रद्धांजलि
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