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Sunday, 6 October 2019

गुजराती संस्कृति की महक है देव भूमि हरिद्वार में ! आखिर कहा नवरात्र के गरबा में झूमे गुजराती नर-नारी ? जाने

* देव भूमि हरिद्वार में है गुजराती संस्कृति की महक
*  इन दिनों माता की अद्भुत भक्ति देखने को मिल रही है।
*  पारंपरिक परिधानों में गरबा, डांडिया करते करीब ढाई सौ गुजराती नर-नारी आकर्षण का केंद्र बने।
(ज्ञान प्रकाश पाण्डेय ) 
हरिद्वार ।  वैसे तो नवरात्र पूरे देश में बड़े धूम धाम से मनाई जाता  है लेकिन गुजरात प्रदेश में नवरात्र की एक अलग ही धूम देखने को मिलती है, वही धूम इन दिनों गुजरात से करीब एक हजार किमी दूर धर्मनगरी हरिद्वार के देवपुरा चौक स्थित भारत सेवा संघ के हाल में देखने को मिल रही है। धर्मनगरी हरिद्वार जो कि माँ शक्ति के पहली शक्तिपीठ वाली नगरी है यहाँ इन दिनों माता की अद्भुत भक्ति देखने को मिल रही है।
 गुजरात के पारंपरिक परिधानों में गरबा, डांडिया करते करीब ढाई सौ गुजराती नर-नारी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। हरिद्वार का ये गुजराती परिवार पिछले १४  सालों से प्रतिवर्ष नवरात्र के दौरान विशेष गरबा व डांडियाँ का आयोजन करता है। इसमें धर्मनगरी हरिद्वार में गुजराती संस्कृति के अनुरूप नवरात्र महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
आयोजन में माँ शक्ति की विधिवत् आरती, पूजा के साथ सभी गरबा नृत्य, डांडिया नृत्य करते हैं एवं गुजराती     प्रसाद का वितरण किया जाता है। ये परिवार नौकरी, व्यापार आदि के सिलसिले में गुजरात से आकर तीर्थ नगरी में रहता है। यह आयोजन हरिद्वार गुज्जु ग्रुप द्वारा शहर के मध्य में भारत सेवा संघ  ,देवपुरा चौक में चल रहा है।इस ग्रुप का नेतृत्व बालाजी कॉर्पोरेशन के राजेश भाई पाठक करते है। राजेश भाई के अनुसार गरबा गुजरात  में प्रचलित एक लोकनृत्य है ।
आजकल इसे पूरे देश में आधुनिक नृत्यकला में स्थान प्राप्त हो गया है। इस रूप में उसका कुछ परिष्कार हुआ है फिर भी उसका लोकनृत्य का तत्व अक्षुण्ण है। आरंभ में देवी के निकट सछिद्र घट में दीप ले जाने के क्रम में यह नृत्य होता था। इस प्रकार यह घट दीपगर्भ कहलाता था। वर्णलोप से यही शब्द गरबा बन गया। आजकल गुजरात में नवरात्रों के दिनों में लड़कियाँ कच्चे मिट्टी के सछिद्र घड़े को फूलपत्तियों से सजाकर उसके चारों ओर नृत्य करती हैं।
गरबा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और अश्विन मास की नवरात्रों को गरबा नृत्योत्सव के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रों की पहली रात्रि को गरबा की स्थापना होती है। फिर उसमें चार ज्योतियाँ प्रज्वलित की जाती हें। फिर उसके चारों ओर ताली बजाती फेरे लगाती हैं।
गरबा नृत्य में ताली, चुटकी, खंजरी, डंडा, मंजीरा आदि का ताल देने के लिए प्रयोग होता हैं तथा स्त्रियाँ दो अथवा चार के समूह में मिलकर विभिन्न प्रकार से आवर्तन करती हैं और देवी के गीत अथवा कृष्णलीला संबंधी गीत गाती हैं। शाक्त-शैव समाज के ये गीत गरबा और वैष्णव अर्थात्‌ राधा कृष्ण के वर्णनवाले गीत गरबा कहे जाते हैं।
    धर्मनगरी हरिद्वार का अद्भुत गुजराती रंग अपने आप में बहुत ही मनमोहक होता है, अपनी भूमि से कोसों दूर रहने के बाद भी अपनी संस्कृति एवं परंपरा को आगे बढ़ाने की सोच के साथ हरिद्वार में रहने वाला गुजराती समाज इस विशेष नवरात्रि कार्यक्रम का आयोजन करता है। इनमें रमेश भाई ठाकर, अल्पेशभाई पटेल, पवनभाई दवे, लहर भाई ,प्रीतेशभाई पटेल, मोंटूभाई देशाणी, जयभाई सोनी, कीर्तनभाई देसाई, लक्मण भाई ,जयराम भाई ,राजुभाई रघुवंशी,राज , रवि लाखनी ,राजेश प्रजापति ,डॉली बेन नायक,  आदि की प्रमुख रूप से मौजूदगी रहती है।
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