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Saturday, 30 November 2019

अमर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने इस दूरस्थ गांव में आखिर क्यों पहुंचे उपराष्ट्रपति वेंकया नायडू ? जाने इतिहास के उन पलो को

* आजादी की पहली चिंगारी को याद करने कुंजा गांव पहुंचे उपराष्ट्रपति, शहीदों को किया नमन।
* उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि उत्तराखंड का इतिहास वीरता से भरा हुआ है।
(श्रीगोपाल नारसन ) 

रुड़की( हरिद्वार )। भले ही इतिहास के पन्ने कुछ भी कहे लेकिन यह सच है कि देश की आजादी का बिगुल बजाने के लिए सन 1857 क्रान्ति का पहला वर्ष नही था। ग्राम कुन्जा बहादुरपुर में सन 1824 में ही क्रांति की मशाल अंग्रेजो के खिलाफ जल गई थी। इस गांव में किसानों ने अंग्रेजों के खिलाफ विरोध का बिगुल बजाया था ।जिसमें उनका नेतृत्व किया था कुन्जा बहादुरपुर के तत्कालीन राजा विजय सिहं ने।तभी तो देश के उपराष्ट्रपति वेंकया नायडू आजादी के दीवाने गांव कुंजा बहादुरपुर के अमर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने इस दूरस्थ गांव में पहुंचे है।इससे पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने इस गांव की सुध ली थी और कुंजा बहादुर पुर को शहीदो का गांव होने का सम्मान दिया था। अमर शहीद राजा विजय सिंह स्मारक एवं कन्या शिक्षा प्रसार समिति की ओर से गांव कुंजा बहादुरपुर (हरिद्वार) में स्वतंत्रता संघर्ष के शहीदों की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति वैंकैया नायडू ने कहा कि देश के गौरवमई इतिहास से आम जनता को जानने नहीं दिया। 1857 की क्रांति के बारे में चार लोगों को ही पता है, लेकिन कुंजा बहादुरपुर गांव में क्रांति की शुरुआत 8 मार्च 1822 को हुई।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि उत्तराखंड का इतिहास वीरता से भरा हुआ है। 17वीं शताब्दी से ही यहां की नारियों ने भी विदेशी आक्रांता को भगाने का काम किया। आज भी उत्तराखंड के अंदर वीरता के एक से शौर्य गाथा हुई, लेकिन इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया। उन्होंने कहा कि देश के सभी महानुभाव स्‍वतंत्रता सेनानियों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। इससे पहले उपराष्‍ट्रपति ने रुड़की के निकट कुंजा बहादुरपुर गांव में 1824 के स्वाधीनता संघर्ष के शहीद राजा विजय सिंह की प्रतिमा पर सादर पुष्पांजलि अर्पित की।उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू भारतीय वायुसेना के विशेष विमान से शनिवार सुबह देहरादून पहुंचे, जहां सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत, केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, उच्च शिक्षा राज्य मंत्री धन सिंह रावत और मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने उनका स्वागत किया। इसके बाद उपराष्ट्रपति वहां कुंजा बहादुरपुर गांव पहुंचे।उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने शहीदों को  नमन करते हुए कहा की हमे शहीदों के पदचिह्नों पर चलना चाहिए।
उन्होंने कहा कि 'जिस कुंजा बहादुरपुर गांव के शहीदों ने शहादत दी है,उस गांव को भी नमन करता हूं''।उन्होंने कहा कि राजा विजय सिंह और उनके सेनापति कल्याण सिंह ने 1857 से 3 दशक पहले आजादी के लिए बिगुल बजाया था''।जिसके लिए गढ़वाल,कुमाऊं से एक हजार लोगों की सेना बनाई और  आजादी के लिए'
किसानों को गिरफ्तार किया गया,उन्हें यातनाएं दी गई।इस दौरान अपनी समस्याओं को लेकर उपराष्ट्रपति से मिलने जा रहे भारतीय किसान यूनियन के करीब एक दर्जन पदाधिकारियों और समर्थकों को पुलिस ने गिरफ्तार कर किया। उपराष्ट्रपति के आगमन को लेकर देहरादून पुलिस ने रूट डायवर्ट प्लान तैयार किया था। जिसके तहत उपराष्ट्रपति के भारतीय सेना के हेलीकॉप्टर से रुड़की पहुंचने पर उन्हें भारी सुरक्षा के बीच कुंजा बहादुरपुर ले जाया गया।इस दौरान आम यातायात पूरी तरह से अवरुद्ध रहा।वर्षा न होने पर गांव में किसानों की फसल सूख गई थी। किसान फसल पैदा न होने के कारण सरकार को लगान देने की स्थिती में नही थे। मजबूर होकर उन्होने  राजा विजय सिंह से लगान माफ करने की गुहार लगाई ।
राजा को किसानो की मांग उचित लगी तो उन्होने अंग्रेजो से उस साल का लगान न लेने की प्रार्थना की परन्तु अंग्रेज नही माने और राजा की प्रार्थना को अंग्रेजो ने उन्हे दुत्कारते हुए ठुकरा दी। जिसकारण राजा विजय सिहं अंग्रेजो से कुपित हो गए और उन्होने अंग्रेजो द्वारा जबरन लगान वसूली का विरोध करने का फैसला किया और उन्होने क्षेत्र के लोगों के साथ मिलकर देश की पहली क्रान्ति को जन्म दिया।राजा विजय सिंह विद्रोही बन जाने के कारण अंग्रेजो की आंख की किरकिरी बन गए। अंग्रेजो ने कुंजा बहादुरपुर को नेस्तनाबूद करने के लिए गांव के कुएं में पीसा हुआ कांच मिला दिया और रात्रि में हमलाकर विद्रोहियों को कुचलने की कौशिश की। राजा विजय सिंह ने भी अंग्रेजो का जमकर मुकाबला किया। उनके सेनापति कल्याण सिंह ने अपनी सैन्य टुकडी के साथ अंग्रेजों पर आक्रमण कर ग्राम कल्हालटी में ज्वालापुर से लाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया था। जिससे बोखलाए अंग्रेजो ने गांव के 152 विद्रोहियों को एक ही दिन में रूडकी के पास के गांव सुनहरा के वट वृक्ष पर लटकाकर फंासी दे दी थी।जिससेे खोफजदा होकर ग्राम सुनहरा, रामपुर व मतलबपुर के लोग अपने धर छोडकर जगंलो में जा छिपे थे।
अंग्रेजो के साथ हुए युद्ध में राजा विजय सिंह जहां शहीद हो गए वही उनके सेनापति कल्याण सिंह की अंग्रेजो ने हत्या कर उसका शव देहरादून जेल के मुख्यद्वार पर लटका दिया था। इसी कारण कुन्जा बहादुरपुर की गिनती शहीद ग्राम के रूप में होती है और उत्तराखण्ड सरकार ने इसी कारण इस गांव को पर्यटन गांव भी धोषित किया हुआ है। वही सुनहरा का ऐतिहासिक वट वृक्ष भी शहीद स्मारक के रूप में दर्शनीय है और पयर्टन विभाग द्वारा इस स्थल का भी सौन्द्रयकरण किया गया हैं। आजादी की इस पहली लडाई के दौरान 27 सितम्बर सन 1930 को रूडकी के राजकीय हाई स्कूल जो अब इन्टर कालेज है,में एक जनसभा हुई थी जिसमें अरूणा आसफ अली आई थी इस सभा की भनक पुलिस को लग गई थी और पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया था, इस धटना में एक दर्जन लोग धायल हुए थे। जबकि 28 लोगो को पुलिस ने गिरफतार किया था। इसी तरह 3 सितम्बर 1930 को झबरेडा में अंग्रेजो को देश से भगाने के लिए हुई जनसभा में पुलिस ने लाठी चार्ज कर लोगो को वहां से भगा दिया था। भगवानपुर मे तो इस बाबत हुई जनसभा में पुलिस के लाठी चार्ज से लाला बल्ली मल्ल बूरी तरह धायल हो गए थे।जिसकारण उनकी शहादत हो गई थी। तब से सन 1857 तक अंग्रेजो के खिलाफ हरिद्वार जिले तत्कालीन जिला सहारनपुर के लोगो का आन्दोलन जारी रहा।
सन 1857 के अगस्त माह में रूडकी के तत्कालीन ज्वांइट मजिस्टृेट एचडी राबर्टसन ने अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह कर रहे लोगो के प्रति कू्ररता दिखाई और ग्राम भनेडा की गुर्जर बस्ती में आग लगवा दी तो लोगो में उनके प्रति इतना गुस्सा व्याप्त हो गया कि उन्हे रूडकी से 6 मील दूर कस्बा मंगलौर जाने के लिए लोगो के जगह जगह विरोध के कारण तीन दिन लग गए थे।आजादी के इन लम्हों को हमेशा याद करने के लिए रूडकी में सुनहरा वट वृक्ष के नीचे हर वर्ष 10 मई को क्षेत्र के स्वतन्त्रता सेनानी और उनके वंशज एक श्रद्धाजंलि सभा का आयोजन करते है।जिसमें उन 152 अमर शहीदों जिन्हे एक ही दिन में क्रूर अंग्रेजो ने सुनहरा वट वृक्ष पर फंासी पर लटका दिया था,समेत अन्य शहीदों को भी श्रद्धासुमन अर्पित किये जाते है। शहीद ग्राम का सम्मान प्राप्त गांव कुंजा बहादुरपुर के विकास के लिए और गांव की पहचान देश विदेश तक पहुंचाने के लिए गांव के बुजुर्ग चौधरी अजमेर सिंह जीवन पर्यन्त काफी भागदौड करते रहे परन्तु राजनेताओ की अनदेखी के चलते इस गांव को अभी तक पर्यटन गांव के रूप में स्वीकृत विकास राशि का भी लाभ नही मिल पाया है। अजमेर सिंह चाहते थेकि उनके गांव के नाम पर रेलवे स्टेशन या फिर रेलवे हाल्ट बनाया जाए ताकि शहीदों की कुर्बानी की याद अमर रह सके। 
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